August 24, 2015

कलाम : सच्चे पथप्रदर्शक मित्र

27 जुलाई, 2015 की शाम! रोजाना की तरह छोटे भाई का फ़ोन आया. अमूमन बातचीत की शुरुआत एक दुसरे का हाल-चाल जानने से होती थी. मगर उस दिन फ़ोन उठाते ही आवाज़ आई, भैया एपीजे अब्दुल कलाम का देहावसान हो गया. वे शिलांग में भाषण देते वक़्त गिर पड़े और अस्पताल ले जाने के कुछ ही समय बाद चिकित्सकों ने उनकी मौत की पुष्टि कर दी.यह जानकर सदमा सा लगा. पहले से ही बीमार शरीर से पस्त पड़ा था, खबर सुनते ही लगा, कोई बेहद अज़ीज़ साथ छोड़कर अचानक चला गया. कमोबेश यही हाल उस हर हिन्दुस्तानी का था, जिसके ह्रदय में हमेशा कलाम नाम सुनते ही एक रचनात्मक तरंग की प्रवाह प्रवाहित होने लगती थी. न जाने लाखों चेहरे उस व्यक्ति के खोने के गम में गमगीन हो गया, जो उसे आजीवन अपने व देश की बेहतरी के लिए सदैव सपने देखने और कर्म करने को प्रेरित करता रहा. जाति, धर्म, क्षेत्र के परे वे तमाम लोग उदास थे, जिसे डॉ. कलाम ने अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से जीवन की तमाम दुश्वारियों के बावजूद सफलता के चरमोत्कर्ष पर पहुँचने की सिख दी. किसी ने खूब लिखा, वे मरे तो लोगों के आँखों में आंसू थे लेकिन तालियाँ बजी- वाह रे भारत माता के लाल! क्या शानदार जीवन जिया!