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July 24, 2013

स्वर्णिम अतीत का खंडहर वर्तमान


अपने को सौभाग्यशाली समझता हूँ कि उत्तर बिहार में सबसे पहले उच्च शिक्षा की दीप जलाने वाले सुप्रसिद्ध लंगट सिंह महाविद्यालय (एल एस कॉलेज) का छात्र रहा हूँ! कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी किए चार वर्ष बीत गए, लेकिन कॉलेज से कभी मोह भंग नहीं हुआ. हजारों किलोमीटर दूर रहने के बाद भी वैसा ही लगाव बना रहा, जैसा पढ़ाई के दौरान था. कॉलेज के साथ साथ ड्यूक हॉस्टल में बिताए दिन हो या शिक्षकों के असीमित पाए स्नेह, सच कहे तो आज भी यह अपना ही लगता है, बिल्कुल अपने घर जैसा!   
जंगल में बदला कॉलेज का उद्यान....चित्र में दीवारों पर उगे पेड़ स्पष्ट देखे जा सकते जा सकते है जिनकी वजह से दीवारे जगह जगह फट गई है
इसलिए जब कभी मुजफ्फरपुर जाता हूँ, कॉलेज जाना कभी नही भूलता. उन लाल दीवारों को निहारना एक सुखद और आत्मीय अनुभूति का एहसास कराती है, नई उर्जा का संचार कराती है. आखिर हो भी क्यों न! यही तो वह जगह है  जहाँ गाँव से निकले एक अनजान आदमी को दुनिया की दौड़ में दौड़ना, सर उठाकर बोलना, शिक्षा के साथ साथ समाज को बारीकी से समझने का पहली बार मौका मिला था. एनएसएस, एनसीसी के भवन भले ही पुराने पड़ चुके हों, लेकिन एक नज़र देखने पर वहां से जुड़ी यादें उसी तरह ताज़ा हो जाती है मानो बीते कल की बात हो!

परिसर में प्रवेश के साथ ही कॉलेज का विशाल परिसर, लाल किले जैसा भवन, मुख्य प्रवेश द्वार से शुरू हुई विशालकाय वृक्षों की कतार, लंगट बाबू की ऊँची मूर्ति, ऐतिहासिक गाँधी कूप, जयप्रकाश नारायण द्वारा उद्घाटित महात्मा गाँधी की प्रतिमा बरबस सबका ध्यान अपनी ओर खींचती है. मुजफ्फरपुर के लाल किले के तौर पर प्रसिद्ध इस कॉलेज का विज्ञान संकाय इतना विशाल है कि हर कमरा देखकर आने की बात हो तो पुरे दिन लग जाए. भूकंप से बचने के उपाय, पानी के निकासी की व्यवस्था, मुख्य भवन के ऊपर बना गुम्बद जैसे कई चीजें आकर्षक है. 1899 में स्थापित इस कॉलेज के भवन निर्माण में वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना भी देखने को मिलता है. सुव्यवस्थित तरीके से परिसर की संरचना शिक्षा के इस मंदिर की सुन्दरता को बढ़ाते है. 

मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, मोतिहारी ही नही, बिहार के दूर-दराज के छात्रों के लिए आज भी एल एस कॉलेज में पढ़ाई करने का मौका मिलना एक स्वप्न पूरा होना जैसा लगता है. ख्यातिनाम शिक्षक की विरासत यहाँ मौजूद है जो न केवल छात्रों को पढ़ाते है, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित भी करते रहते है. प्रतिभाओं का तराशना आज भी कई शिक्षकों का मुख्य कार्य है.    
कॉलेज का ऐतिहासिक चबूतरा....अपने वजूद बचाए रखने का संघर्ष करते हुए  

इन सब बातों के बीच कॉलेज परिसर आजकल खामोश दिखती है! वह उदास लगती है! ऐसा लगता है जैसे वह अपनी उपेक्षा से खिन्न है! अपनी दुर्दशा पर उसे दुःख है और बातें करने पर  मानो फफ़ककर कहती है– शिक्षा के उत्कृष्ट मंदिर बनाने, देश के युवा पीढ़ी को शिक्षित कर उसे नवनिर्माण के कार्य में लगाने के जिस मकसद से लंगट बाबू ने इस कॉलेज की नींव रखी थी, क्या उसे पूरा करने में वर्तमान पीढ़ी लगी है? नही! सबने मिलकर वर्तमान को क्या बना डाला है, कभी सोचने का मौका मिला तुम्हें? स्वर्णिम अतीत को भूल गए! उन लोगों को भूल गए, जिन्होंने इस कॉलेज की स्थापना में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था, कॉलेज के शिक्षक व छात्र के रूप में इसकी प्रतिष्ठा बढ़ाई थी! कभी तो फुरसत निकालकर मेरे अतीत को देखो! कभी तो उन पन्नो को पलटो जो कॉलेज की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाले थे! शायद तुम्हें कुछ प्रेरणा मिले! लंगट बाबू के सपनें और डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आचार्य जे. बी. कृपलानी, रामधारी सिंह दिनकर जैसे शिक्षकों की छोड़ी विरासत कहाँ दिखता है आज? क्यों उन्हें इतिहास के पन्नो में ही दफना दिया गया? उन्हें कॉलेज में उचित सम्मान क्यूँ नहीं मिलता? स्वतंत्रता सेनानी, आइएएस, आइपीएस, न्यायाधीश, पत्रकार, राजनेता, समाजसेवीयों की वजह से जिस कॉलेज का मान-सम्मान बढ़ता था, वह अब हमेशा अपमानित ही क्यों होता रहता है? दीवारे ढहने वाली है! लंगट बाबू के स्वप्न वर्षों जिन्दा रहने के बाद अब बिखड़ने वाले है, तुम क्या कर रहे हों इसके लिए?

परिसर घुमे तो दिखता है बेबसी और बर्बादी का आलम! कॉलेज की धरोहर तारामंडल तो मानो हमेशा रोती-बिलखती ही रहती है. कभी तारों की गणना करने वाला यह केंद्र अब शौचालय बन गया है. तारामंडल के बगल में बना कैंटीन कब खुलता है और कब बंद हो जाता है, किसी को पता भी नही चलता। कैंटीन के पीछे कॉलेज के शिक्षक रहे स्व. प्रो. बागेश्वरी उद्यान की सफाई वर्ष में शायद एक-दो बार होती है. वह भी पुण्यतिथि का इंतजार करती है.  दुःख होता है जानकार, बहुत मेहनत और हजारों लोगों के सहयोग से बनने वाला कॉलेज का भवन जमींदोज होने को तैयार है. 

विद्यार्थियों से हरा भरा दिखने वाला कैम्पस आजकल झाड़ियों से ही गुलजार है. दीवारों पर पेड़ जगह जगह उग आए है. घुमे तो समूचे परिसर में छोटे छोटे जंगलनुमा पेड़ ही पेड़ दीखते है. गौर से देखने पर लगता है, मानो ये पेड़ किसी गैरसरकारी संगठन द्वारा हरियाली योजना के तहत लगायी गयी हो! इन पेड़ों ने भवन को बिल्कुल कमजोर बना दिया है. दीवारें में कई जगह दरारें आ गई है. शायद वो हल्के भूकंप को भी सहने न पाए.

कभी विद्यार्थियों से सजने वाला लंगट हॉस्टल और न्यू हॉस्टल के अस्तित्व अब पहचाने भी नही जा सकते. वहां अब या तो जंगल है, या कुछ अस्थाई वर्ग चलते है या एनसीसी के कैम्प लगते है. परिसर में बचा वह ड्यूक हॉस्टल तो बस किसी तरह जिन्दा है. कभी उसे व्यवस्था तड़पाती है तो कभी कुछ सिरफिरे लोगों की गतिविधियाँ उसे रुलाती रहती है. हॉस्टल के भीतरी और बाहरी हिस्सा सरस्वती पूजा होने से पहले तक जंगल में ही तब्दील रहती है. वहां सुविधाओं का घोर अभाव है. न जाने कितनी नेतागिरी हो गयी लेकिन वर्षों से रखा जेनरेटर आज भी चलने का इंतजार कर रही है. 

कई महापुरुषों के नामों से जाने जानेवाले और आधिकारिक रूप से चिन्हित दर्जनों उद्यान की अब पहचान भी नही की जा सकती. अब वे जंगलों में तब्दील हो गए है. कक्षा न रहने की स्थिति में पढ़ने-लिखने वाली जगह बॉयज कॉमन रूम कीड़े-मकोड़े के स्थायी कमरे में तब्दील हो गए है जो अपनी सफाई के लिए हमेशा किसी कार्यक्रम हेतु कमरा बुक होने, किसी शादी के बाराती या नामांकन प्रक्रिया शुरू होने का इंतजार करती है. सैंकड़ों राजनेता, उच्च आधिकारी, समाज सेवक, शिक्षाविद से अपनी पहचान बनाने वाला कॉलेज पिछले कई वर्षों से नकारात्मक वजहों से ही चर्चा में रहता है. ये चर्चाएँ न केवल कॉलेज की प्रतिष्ठा को धुमिल करते है बल्कि उस अतीत को भी ज़लील करने का काम करते है जो हमेशा शहर का नाम पुरे देश में रौशन किया करते थे! लगता है, कॉलेज का स्वर्णिम अतीत वर्तमान मे खंडहर में बदल गया है! जो बस जी ले रहा है दुआओं के सहारे!
 दुर्दशा देखिए हॉस्टल के ठीक सामने के खेल मैदान का ....यहाँ सिर्फ सरस्वती पूजा के समय सफाई होती है।

ऐसा नही है कि कॉलेज में कुछ भी सही नही चल रहा और सबकुछ गलत ही हो रहा है. कुछ सही होता तो दीखता है लेकिन खंडहर में तब्दील होते इस कॉलेज के लिए काफी नही है. 114 वर्ष पुराना यह कॉलेज महज नैक(NAAC) के प्रमाण पत्र पाने का हक़दार ही नही, राष्ट्रीय धरोहर बनने का भी पूरा हक़ रखता है. गाँधी के चंपारण आन्दोलन की पटकथा लिखे जाने का गवाह रहा कॉलेज किसी समारोह या किसी सर्टिफिकेट के लिए ही मरम्मत का मोहताज नही है बल्कि हमेशा अपना ख्याल रखने की आस रखता है. उम्मीद है, बदलते वक़्त के साथ साथ कॉलेज की सूरत बदलेगी, भवनों की सेहत ठीक होगी और शानदार अतीत की ज़मीन पर खड़ा कॉलेज वर्तमान की दुश्वारियों से बाहर निकलकर उज्जवल भविष्य की बुनियाद तैयार करेगा! 

संवेदनाओं के साथ साथ शुभकामनाएं!

                         

7 comments:

  1. aapne yaad taza kar di clg k dino ki......ye jo 2nd photo hai wo maths dept. ki hai na?? humare clg ko sach me bahut jyada jarurat hai recognition ki, aur thik tarike se rakh rakhao ki, bahut kharab lagta hai ki is level k clg ki thik se dekh rekh nhi ki jati sarkar k dwara.......:( :(

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    1. aapne sahi pehchana Pralayankar ji....ye math deptt k pas ka hi h photo.....L.S.College ki haalat bahut h...politics hota h Langat babu k sapno k naampar....Kisi ko fiqr nhi h college ki, fiqr agar karte dikhte v h koi to wah token hota h, fruitful nhi... aap ham sabke dwara chalaye ja rhe chhote prayas ko lscollege.blogspot.com par dekh sakte hai....blog dekhne k baad aapki pratikriyayon ka intzar rhega...aabhar, blog padhne aur bite dinon ki yaad ko jagane k liye...

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    3. yes Aditi.......we are planning to do some strong step for it very soon. be in touch and support us. also visit lscollege.blogspot.com for our other activity related with college. thanks for ur kind responce.

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  2. Very articulative. Hope that people will come closer and impress upon people who can do something to renovate the premises which has been witness to many great personalities and events of past.

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  3. अपनी शैक्षणिक संस्‍था के प्रति यह आदर, ऐसा लगाव, अच्‍छा लगा.

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