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September 29, 2013

कब लौटेगी नवरूणा?

बेटियों को पूजने वाले देश में जब माँ-बहनों की सरेआम अस्मत लुटनी शुरू हो जाए! मैत्रेयी, गार्गी के देश में बेटियों का दुनिया से आँखें मिलाकर बात करना दुश्वार हो जाए! कभी स्वयंवर रचाकर वर खोजने की इजाज़त देने वाला समाज, उसकी अपनी पसंद, नापसंदगी के दायरे में हस्तक्षेप करने की वजाए मरने-मारने पर उतारू हो जाए, यह समझना मुश्किल नही कि हम किस दौर से गुजर रहे है! लेकिन इंसानियत तब तार-तार हो जाती है जब रक्षक भक्षक बन जाए, अपनी बारी का इंतजार करता समाज चुप्पी साधे तमाशा देखता रहे और प्रबुद्ध वर्ग सरकार को ड्राईंग रूम से कोसता रहे! दुःख तो तब होता है, जब पता चलता है कि अपराधी और अपराध का भी एक वर्ग बना दिया जाता है अपने देश में, जहाँ एक बेटी के साथ हुए अन्याय में अपनी नाकामी छुपाने और जन-विरोध को देखते हुए उसे न्याय दिलाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी जाती है, लेकिन दूसरी ओर हजारों बेटियों की कोई परवाह नही रहती. उसे बचाने की कोशिश भी होती सही से दिखाई नही देती. इसी का नमूना है नवरूणा.      
18 सितंबर, 2012 की रात जब पूरा मुजफ्फरपुर शहर नींद के आगोश में समाया हुआ था, ठीक उसी समय अपराधियों ने एक बेटी नवरूणा चक्रवर्ती को उसके बचपन, उसके सजाए सपनों सहित अगवा कर लिया! लोग कहते है कि वो काली रात एक बेटी के ऊपर महज ज़मीन के कुछ टुकड़ों की वजह से कहर बनकर टूट पड़ा था! एक हँसते, खेलते, अपनी ही दुनिया में खुशहाल एक परिवार की हँसी अचानक से कही खो गई! घर से शहर तक में सन्नाटा छा गया! जवाहरलाल रोड की गलियाँ अपनी बिटिया के गम में गमगीन हो चीत्कारने लगी! बेटी के गम में ग़मज़दा परिवार टूट सा गया! लेकिन उन्होंने बिहार के सुशासन राज के अपराधियों की नापाक हरकत से हार नही मानी! बल्कि बेटी की घर वापसी के लिए परिजनों ने तत्काल पुलिस, सरकार, नेता, सबके दरवाजों  पर दस्तक दी! जहाँ भी आशा के किरण दिखे, अपनी गुहार लगाई! कुछ लोगों के प्रयाशों से समाज से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने इस बंगाली मूल की बेटी की खोज-खबर ली! मगर इन सब कोशिशों के बावजूद दुर्भाग्य देखिए, आज तक न तो बेटी मिली, न बिटिया का कुछ अता-पता चला!
    बिहार के मुजफ्फरपुर शहर के प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में 7वीं कक्षा की छात्रा नवरूणा को अगवा हुए आज एक साल से ज्यादा हो गए है. नवरूणा और न्याय की मांग लिए खूब प्रदर्शन हुए! हजारों लोगों ने अपने अपने तरीकों से इस मासूम बेटी के लिए आवाज़े उठाई! देश विदेश में रहनेवाले लोगों के दुआओं की दस्तक मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे तक पहुंची! लगभग 12 वर्ष की नवरूणा चक्रवर्ती की चीख सालभर से हजारों किलोमीटर दूर तक सुनाई दे रही है! लेकिन अफ़सोस!.... न दुआएँ सुनी जा रही है, न दर्द! ईश्वर ख़ामोशी से सब ऐसे देख रहा है, मानो कठिन परीक्षा लेने की उसने ठान ली हो! और सरकार.... वो तो अपनी थोथी दलीलों में ही बेटी के दर्द को दबाने में जुटी है!
छाती फटती है, जब बड़े बड़े वादे करने वाली भरोसेमंद संस्थाएं एक बेटी को ढूंढने में शिथिल दिखाई देती है! काम ऐसे हो रहा है, मानो सालों-साल चलने वाली भारत-पाकिस्तान की वार्ता! हालात तो ऐसे है कि रोते-बिलखते परिजन तो अब चाहकर भी अपनी आँखों से आंसू नही निकाल पाते!(देखे-https://www.youtube.com/watch?v=Cu6whnn9ljE) और शुभचिंतक तो बस थके, दुखी मन से अब भी उस अभागी बेटी के घर लौटने की आस में बैठे परिजनों के विश्वास के साथ दुआएं ही कर रहे है! वे चिल्लाते है, तो कुछ सुगबुगाहट होती है! चुप रहते है, तब सब शांत हो जाता है! बर्दास्त नही होते तो कभी जंतर मंतर तो कभी जनमत की भावनाओं से अवगत कराने के लिए ईमेल, चिठ्ठियाँ लिखते है. 
नवरूणा तो इतनी बदनसीब है कि उसकी आवाज़ सुप्रीम कोर्ट भी ठीक से नही सुनना चाहती! वरना बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट के केस का पांचवीं बार तारीख बढ़ने का अपवाद उसी के केस में क्यों देखने को मिलता! इंसानी दरिन्दे उसे तो उठा कर ले ही गए, लगता है नवरूणा के परिजन, बड़ी बहन नवरुपा सहित संस्कृति और श्रेया जैसी दोस्तों की खुशियों के साथ साथ हम जैसे आम आदमी का न्याय के ऊपर भरोसा भी वे साथ लेकर चले गए!
नवरूणा अपहरण केस के तथ्यों को लिखे तो क्रूर पुलिसिया चेहरे के ऊपर हजारों पन्ने लिखे जा सकते है! बहुत लिखा, पढ़ा जा चूका है नवरूणा पर! विशेषकर सरकार की असंवेदनशीलता का किस्सा कहे तो कई दिन, कई रात छोटी पड़ जाएगी! कारनामें सुनेंगे तो लगेगा जैसी शर्म भी अपनी जगह ढूंढने को मजबूर है! क्या किया पुरे साल सरकार और पुलिस ने? जबाब मिलेगा- एक बेटी का चरित्र लांक्षण, परिजनों के साथ भावनात्मक अत्याचार, शुभचिन्तकों को धमकी और न्याय व नवरूणा की आवाज़ को दबाने की हर संभव कोशिश! 
हाल ही में, काफी शोर-गुल के बाद बिहार सरकार नवरूणा को खोजने की जिम्मेवारी सीबीआई को सौंपने पर मजबूर तो हो गई, लेकिन बीते दिनों में हुए कुछ घटनाक्रम से ऐसा लगता है कि इस प्रयास में भी ईमानदारी नही थी! वह आज भी 8 माह से नवरूणा को खोज पाने में नाकाम और लापरवाह रहे मुजफ्फरपुर पुलिस की जाँच के दायरे में सिमटी रहनेवाली सीआईडी पर ही भरोसा कर रही है! लगता है जैसे, उसे इस केस को रफा-दफ़ा करने के लिए उकसा रही हो! सीबीआई को केस सौंपने के निर्णय के बाद सीआईडी की अतिसक्रियता से सरकार के मंशे पर संदेह उठना लाजमी है! हम समझ सकते है, बड़ा मुश्किल रहा होगा सरकार के लिए इस छोटे से बताए जाने वाले केस को सीबीआई को सौंपने का निर्णय लेना. खासकर, वैसा निर्णय, जो विधानसभा और विधान परिषद में हंगामे के बाद भी माना नही गया था. लेकिन अब जबकि मामला सीबीआई के हवाले है, फिर अचानक से सक्रिय दिखने की कैसी विवशता? कही यह भू-माफियाओं, राजनेताओं व सरकारी अधिकारीयों, बाबुओं के कहने पर तो नही हो रही है? अबतक की जाँच से कुछ ठोस नही निकला, तो फिर से इधर उधर की बातों में नवरूणा और न्याय की मांग को उलझाना, उसे परिदृश्य से गायब करने की हरकतें बेचैन करती है! मानो परिस्थितियां डराते हुए कहती हो- नवरूणा तो नही ही मिलेगी, उसे न्याय भी नही मिलेगा!
बेहद अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आजतक सरकार का कोई नुमयिन्दा(झूठी दिलासा देनी वाली पुलिस को छोड़कर) नवरूणा के परिजनों का हाल चाल लेने नही आया! मुख्यमंत्री से मिलने की कोशिशे बेटी के अपहरण के बाद विफल कर दी गई थी! एक बेटी के गम में डूबी माँ के अपील को अनसुना कर दिया गया था! आवेदन छीन लिए गए थे! उसे फाड़ दिया गया था! यहाँ तक कि मुख्यमंत्री और तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री द्वारा बड़ी बेशर्मी से परिजनों को ही सार्वजनिक तौर पर बिना किसी ठोस वजह के अबतक लगातार कठघरे में खड़ा किया जाता रहा! फिर भी उम्मीद है, सरकार अब  मानवीय संवेदनाओं का माखौल नही उड़ाएगी! बल्कि वह कुछ प्रयास करेगी जल्द जाँच शुरू करवाने के लिए!
इस बात का संतोष है कि प्रधानमंत्री, गृह मंत्रालय सहित अनेक संस्थानों के कई अधिकारी इस मामले में आज रूचि दिखा रहे है, वे नवरूणा और न्याय की लड़ाई में मौन लेकिन मुखर सहयोगी बने हुए है! इनके रहते इस भरोसे की लौ अब भी जल रही है कि उठने वाली आवाज, अबतक गिरे आंसू व्यर्थ नही जाएंगे! लेकिन यह सवाल बार बार चीख-चीखकर पूछती है- कबतक लौटेगी नवरूणा? क्या उसे न्याय मिल पाएगा? क्या नवरूणा की पुकार समाज और सरकार कभी सुनेगी? या फिर वह हर साल अपने घर से, अपने लोगों के बीच से गायब कर दिए जानेवाली लाखों बेटियों की फेहरिस्त में एक और नाम के रूप में शामिल होकर रह जाएगी? सबसे बड़ी बात, नवरूणा और न्याय के इस सवाल को पूछनेवाला, इसके जबाब ढूंढने वाला इसे अंजाम तक पहुँचा पाएंगे या फिर नवरूणा एक सवाल बनकर ही रह जाएगी?  
(नवरूणा केस से संबंधित और जानकारी http://savegirlcampaign.blogspot.in/ पर ली जा सकती है) 

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