डॉ. महेश शर्मा
केन्द्रीय कला एवं संस्कृति मंत्री,
भारत सरकार
विषय- पुरस्कार वापसी विभाग बनाकर पुरस्कार लौटाने की ऑनलाइन व्यवस्था करने की मांग के संबंध में
महोदय,
मै एक साधारण भारतीय के नाते आपको यह पत्र लिख रहा हूँ, जो कुछ पाखंडियों के करतूतों से उद्द्वेलित और इस तमाशे से हैरान। आपको विदित है ही कि मोदी विरोधियों में एक नया फैशन चला है, वे हर उस मौके की तलाश में जुटे रहते है, जहाँ प्रधानमंत्री जी के ऊपर कीचड़ उछालते हुए बेतुके अतार्किक सवाल उठाया जा सकें। ऐसे लोग बेहद संगठित, शातिराना अंदाज में और चुनिंदा मामलों में बवाल खड़ा करते है और इसपर निर्रथक बहस खड़ा करके जरुरी मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास करते रहते है। इन दिनों वे हर उस छोटी-बड़ी घटना को सांप्रदायिक रंग देना चाहते है, जो निहायती तौर पर एक आपराधिक घटना से ज्यादा कुछ नही होती। ये लोग उन्मुक्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से हर चीज को जोड़कर फासीवादी जुमले इस्तेमाल करते है और हर घटना की जिम्मेवारी मोदी जी के मत्थे मढ़ते नही अघाते। इस काम में वे ललित निबंध, मार्मिक कविताएँ, भावुक खुला पत्र फुरसत में लिखा करते है। पीएम बनने से पहले तो हर कोशिश इनकी नाकाम रही, अब पीएम बनने के बाद मोदी विरोध में छलनी हो चुके उनके कलेजे को इस तरह की प्रयासों से सुकून तो मिलता ही है , मुफ़्त में प्रचार भी मिल जाता है। वैसे और चाहिए इन्हें क्या! साहित्यकार के नामपर ये वैचारिक नंगई पर उतर आए है, जो बेहद निराशा और हताशा का परिचायक मात्र है।
इसी क्रम में हताश निराश हो चुके मोदी विरोधी साहित्यकारों का गिरोह इन दिनों पुरस्कार वापसी अभियान चला रहा है। वे इकठ्ठे बिना किसी शोर शराबे किये यह कार्य करने की वजाए बारी बारी से इसकी घोषणा करते है, वही रटे रटाए शब्दों के जरिये अपनी फ़र्ज़ी दलीलें पेश करते है ताकि अखबारों में जगह मिल सकें, टीवी का कुछ फुटेज खा सकें और इस स्टंट के जरिये मुफ़्त की सहानुभूति बटोरकर कुछ और अन्य पुरस्कारों का जुगार लगाने के साथ साथ देश व प्रधानमंत्री के छवि पर बट्टा लगाने की असफल कोशिश कर सकें।
मुझे लगता है, यह एक अच्छा अवसर है कि ऐसे लोगों के प्रति कृत्यज्ञता व्यक्त करते हुए इन लोगों को पुरस्कार लौटाने के लिए केंद्र सरकार को विशेष प्रबंध करना चाहिए। इनमें कई बुजुर्ग भी है, जो साहित्य अकादमी मिलने से पहले वातानुकूलित कमरे में गरीबों के लिए कवितायें लिखकर वाहवाही ही नही, जुगाड़ से कई पुरस्कार भी बटोर ले गए। अब ऐसे लोगों के लिए कुछ खास व्यवस्था तो होनी ही चाहिए।
मेरा सुझाव है कि;
(1) पुरस्कार लौटाने के इच्छुक लोगों की सुविधा के लिए ऑनलाइन पुरस्कार लौटाने की व्यवस्था होनी चाहिए। आखिर डिजिटल इंडिया अभियान के रहते ये स्याही खर्च कर पुरस्कार लौटाएं, यह कतई उचित नही है।
(2) आग्रह है कि वामपंथी मुक्त एक स्वतंत्र समिति बनाकर पुरस्कार मिलने से हुए फायदे व इसे देने में हुए खर्च का आंकलन करवाएं ताकि प्रमाण पत्र के साथ साथ पुरस्कार राशि भी ब्याज सहित वसूला जा सकें। इस राशि का इस्तेमाल बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओ अभियान में किए जाने की मै सिफारिश करता हूँ।
(3) साहित्य अकादमी लौटाने वाले लोगों की किताबें न केवल पाठ्यक्रमों से निकाली जाए बल्कि इनकी बहुभाषी रचनाएं भी वापस ली जाए. इस पूरी प्रक्रिया में सरकार के हुए खर्च भी इन लेखकों से वसूले जाए।
(3) अबतक मिली साहित्यिक पुरस्कारों को देने में अपनाई गयी प्रक्रिया की भी जाँच करवानी चाहिए और इस बात की विशेष पड़ताल होनी चाहिए कि कही ये लोग किसी योग्य व्यक्ति को पछाड़कर ये पुरस्कार तो नही पा गए। साथ ही अबतक गठित की गई पुरस्कार चयन समिति और पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं के संबंधों की भी जाँच करवाएं!
मुझे देश के कला एवं संस्कृति मंत्रालय के मंत्री के नाते पूरा विश्वास है, इन सुझावों पर आप अमल करेंगे। जब तोहमत लगा ही है तो लोकतान्त्रिक दायरे में रहकर इनकों भी पुरस्कार लौटाने की पूरी प्रक्रिया पालन करवा लेने में ही भलाई है। वरना न इधर के रहे, न उधर के और गाँव की एक कहावत चरितार्थ हो गई- जात गवईली और भातो न खईली।
सादर,
अभिषेक रंजन
एक साधारण भारतीय
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