दिल्ली से सटे गौतम बुद्ध नगर लोकसभा सीट से घोषित आम आदमी पार्टी की प्रत्यासी सविता शर्मा का नामांकन रद्द हो गया. कारण था आप उम्मीदवार जरुरी 10 प्रस्तावक भी नही जुटा पाई. यह वही सीट है, जहाँ पिछले लोकसभा सीट में आप उम्मीदवार को लगभग 32358 वोट मिले थे. ऐसा भी नही था कि सविता शर्मा कोई सामान्य "आम आदमी" थी. सविता एक कॉलेज प्रोफेसर थी, लम्बे समय से आप से जुड़ी थी.
सविता शर्मा का मामला दरअसल लोकसभा चुनाव-2019 में आप के राजनीतिक भविष्य की तस्वीर दिखाती है कि कैसे पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी की बराबरी कर रहे केजरीवाल इस बार के चुनावी मैदान में खुद तो लड़ने की हिम्मत नही जुटा पाए, पार्टी भी अपनी राजनीतिक वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही है.
दिल्ली पर ही है नज़र
पिछले चुनाव में देशभर में अपने उम्मीदवार उतारने वाली पार्टी केवल दिल्ली, पंजाब, हरियाणा सहित लगभग 30 सीटों पर ही इसबार मैदान में है. पिछले चुनाव में 4 सांसद देनेवाले पंजाब में हालत पहले से ख़राब है. इसलिए आप का पूरा ध्यान दिल्ली पर है क्योंकि उसे पता है कि दिल्ली के बाहर उसे कोई सीटें मिलने नही जा रही. वही दिल्ली में पिछली बार की तरह इसबार भी जीरो पर आउट हुए तो पार्टी के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा. फिर अगले वर्ष होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में दुबारा जीतकर आने की रही-सही संभावनाए भी उसकी समाप्त हो जाएगी.
दिल्ली में खाता खुलवाने की यही बेचैनी आप में इतनी है कि वह अपनी धुर-विरोधी रही कांग्रेस से समझौता करने के लिए मिन्नते करती नज़र आई. कांग्रेस से जब गठबंधन करने की तमाम कोशिशें असफल रही तो आप के आगे मन मारकर सभी सीटों पर अकेले ही लड़ने के सिवाए कोई चारा नही बचा था. अभी हालत ये है कि कहने को तो दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है लेकिन आप का पूरा चुनावी प्रचार ईस्ट दिल्ली सीट के इर्द-गिर्द ही घूम रही है. आप को केवल इसी सीट से उम्मीदें बंधी है और इसे जीतने के लिए वह तमाम हथकंडे अपनाते नज़र आ रही है.
बीतें लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक जमानत जब्त करवाने वाली पार्टी बनी थी आप
2014 के चुनाव के समय आप की लोकप्रियता शिखर पर थी. मोदी-विरोधी मीडिया के एक खेमे ने न केवल आम आदमी पार्टी को भाजपा के समकक्ष खड़ा कर केजरीवाल को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया था बल्कि स्वयं केजरीवाल ने भी खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार जताते हुए पुरे देश भर में अपने उम्मीदवार उतार दिए थे. जानकार आश्चर्य होगा कि बसपा और कांग्रेस के बाद सबसे अधिक उम्मीदवार आम आदमी पार्टी के ही थे. जहाँ बसपा के 503 उम्मीदवार लोकसभा चुनाव के मैदान में थे, वही कांग्रेस ने अपने 464 उम्मीदवार उतारे थे. रोचक बात ये है कि लोकसभा चुनाव-2014 में अंततः विजय पाने वाली भाजपा ने अपने केवल 428 उम्मीदवार ही उतारे थे.
आप ने जो 432 उम्मीदवार उतारे थे, उनमें से केवल 19 की जमानत बची, बाकी 413 उम्मीदवार केजरीवाल को प्रधानमंत्री बनाने के अभियान में जीतना तो दूर अपनी जमानत भी नही बचा पाए. शहरी स्थानों पर टीवी और अख़बारों का फुटेज खाने और माहौल बनाने के बावजूद भी आप दिल्ली और लुधियाना को छोड़कर कही भी 10% वोट भी नही हासिल कर पाई. केजरीवाल के प्रधानमंत्री बनने की प्रबल संभावना की ज़मीनी हालत ऐसी थी कि आप को मिले कुल मतों का 53.3% दिल्ली, पंजाब, चड़ीगढ़ के 21 सीटों पर मिले मत थे, बाकी के 411 सीटों पर उसे केवल 46.7% मत ही मिले. यानी औसतन 14000.
MCD चुनाव के सदमे से उभरी नही है आप
दिल्ली नगर निगम(MCD) चुनाव में मिली हार का सदमा भी आप का साए की तरह पीछा कर रही है. विधानसभा चुनाव-2015 में 70 में से 67 सीटें जीतने वाली आप को दो वर्ष हुए नगर निगम चुनावों में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. MCD के चुनाव में आप को केवल 49 सीटें ही मिली थी. वही 10 साल से MCD पर राज कर रही भाजपा को 272 सीटों में से 181 सीटों पर जीत मिली. इस चुनाव में कांग्रेस को 31 सीटें मिली थी. बीतें नगर निगम चुनावों से इस परिणाम की तुलना करें तो परंपरागत रूप से भाजपा-कांग्रेस के बीच होने वाले पिछले चुनाव से भाजपा को जहाँ 43 सीटें अधिक मिली थी, वही कांग्रेस को 46 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा. MCD में भाजपा की यह जीत काफी बड़ी मानी जाती है. एक दशक के एंटी-इंकमबेंसी था, वही दूसरी तरफ प्रचंड बहुमत से बैठी आप सरकार. लेकिन सभी जीते हुए उम्मीदवारों को बदल कर भाजपा चुनाव लड़ी और चमत्कारिक जीत से तीनों नगर निगमों पर उसका कब्ज़ा है.
आप के चुनावी मुद्दें में दम नही
आप दिल्ली में इस बार पूर्ण राज्य की दर्जा के मांग के साथ चुनावी मैदान में उतरी है. आप नामांकन वापसी के दिन तक कांग्रेस से गठबंधन की आस में लगी रही. गठबंधन की इन कोशिशों से आप के चुनावी अभियान को काफी नुकसान झेलना पड़ा. दिल्ली की जनता के नज़र में पहले ही अपना विश्वास खो चुकी आप को सामान्य लोगों ने शक की निगाह से देखना शुरू कर दिया. पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग भी दूर-दूर तक न तो चुनावी मुद्दा बनती नज़र आती है, न ही जनता के बीच में इसे कोई सीरियस मुद्दा मानने को तैयार है. सबको पता है कि यह मांग किसी भी हाल में पूरा होने वाला नही है. दिल्ली को पूर्ण राज्य देने का मतलब है देश की राजधानी को कही और ले जाना जो किसी भी हाल में संभव नही है. दरअसल पूर्ण राज्य के मांग के जरिये केजरीवाल जनता को यह समझाने की कोशिश कर रहे है कि बगैर पूर्ण राज्य के दिल्ली का विकास संभव नही है और हर मर्ज की दवा पूर्ण राज्य का दर्जा ही है. यही वजह है कि दिल्ली की जनता के लिए किये अपने कार्यों की वजाए आप अपने काम न करने की मज़बूरी के नामपर दिल्ली का वोट लेना चाहती है. कायदे से आप को अपने किये कार्यों को बताना चाहिए. वह अलग बात है कि बीते 4.5 वर्षों के शासन में वह अपना एक भी चुनावी वादा पूरा नही कर सकी है.
अब ऐसे समय में, जबकि दिल्ली का चुनाव बेहद नजदीक है, हर पार्टी चुनावी मैदान में वोटरों को रिझाने में जुटी है, आप के लिए यह चुनाव करो या मरो जैसी स्थिति सा है. कांग्रेस अपनी खोई ज़मीन दुबारा पाने के लिए संघर्ष कर रही है, वही आप आंदोलन से उपजी संवेदनाओं के बल पर पाई लोकप्रियता को बचाने की जद्दोजहद करती नज़र आ रही है. कांग्रेस के लिए तो फिर भी बाकी के राज्यों में कुछ संभावनाएं बची है, आप के लिए दिल्ली के सिवा कुछ नही. देखना है इस महत्वपूर्ण चुनाव में आप बची रह पाती है या फिर झाडू आप की ही राजनीति को साफ़ कर देती है.
सविता शर्मा का मामला दरअसल लोकसभा चुनाव-2019 में आप के राजनीतिक भविष्य की तस्वीर दिखाती है कि कैसे पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी की बराबरी कर रहे केजरीवाल इस बार के चुनावी मैदान में खुद तो लड़ने की हिम्मत नही जुटा पाए, पार्टी भी अपनी राजनीतिक वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही है.
दिल्ली पर ही है नज़र
पिछले चुनाव में देशभर में अपने उम्मीदवार उतारने वाली पार्टी केवल दिल्ली, पंजाब, हरियाणा सहित लगभग 30 सीटों पर ही इसबार मैदान में है. पिछले चुनाव में 4 सांसद देनेवाले पंजाब में हालत पहले से ख़राब है. इसलिए आप का पूरा ध्यान दिल्ली पर है क्योंकि उसे पता है कि दिल्ली के बाहर उसे कोई सीटें मिलने नही जा रही. वही दिल्ली में पिछली बार की तरह इसबार भी जीरो पर आउट हुए तो पार्टी के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा. फिर अगले वर्ष होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव में दुबारा जीतकर आने की रही-सही संभावनाए भी उसकी समाप्त हो जाएगी.
दिल्ली में खाता खुलवाने की यही बेचैनी आप में इतनी है कि वह अपनी धुर-विरोधी रही कांग्रेस से समझौता करने के लिए मिन्नते करती नज़र आई. कांग्रेस से जब गठबंधन करने की तमाम कोशिशें असफल रही तो आप के आगे मन मारकर सभी सीटों पर अकेले ही लड़ने के सिवाए कोई चारा नही बचा था. अभी हालत ये है कि कहने को तो दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है लेकिन आप का पूरा चुनावी प्रचार ईस्ट दिल्ली सीट के इर्द-गिर्द ही घूम रही है. आप को केवल इसी सीट से उम्मीदें बंधी है और इसे जीतने के लिए वह तमाम हथकंडे अपनाते नज़र आ रही है.
बीतें लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक जमानत जब्त करवाने वाली पार्टी बनी थी आप
2014 के चुनाव के समय आप की लोकप्रियता शिखर पर थी. मोदी-विरोधी मीडिया के एक खेमे ने न केवल आम आदमी पार्टी को भाजपा के समकक्ष खड़ा कर केजरीवाल को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया था बल्कि स्वयं केजरीवाल ने भी खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार जताते हुए पुरे देश भर में अपने उम्मीदवार उतार दिए थे. जानकार आश्चर्य होगा कि बसपा और कांग्रेस के बाद सबसे अधिक उम्मीदवार आम आदमी पार्टी के ही थे. जहाँ बसपा के 503 उम्मीदवार लोकसभा चुनाव के मैदान में थे, वही कांग्रेस ने अपने 464 उम्मीदवार उतारे थे. रोचक बात ये है कि लोकसभा चुनाव-2014 में अंततः विजय पाने वाली भाजपा ने अपने केवल 428 उम्मीदवार ही उतारे थे.
आप ने जो 432 उम्मीदवार उतारे थे, उनमें से केवल 19 की जमानत बची, बाकी 413 उम्मीदवार केजरीवाल को प्रधानमंत्री बनाने के अभियान में जीतना तो दूर अपनी जमानत भी नही बचा पाए. शहरी स्थानों पर टीवी और अख़बारों का फुटेज खाने और माहौल बनाने के बावजूद भी आप दिल्ली और लुधियाना को छोड़कर कही भी 10% वोट भी नही हासिल कर पाई. केजरीवाल के प्रधानमंत्री बनने की प्रबल संभावना की ज़मीनी हालत ऐसी थी कि आप को मिले कुल मतों का 53.3% दिल्ली, पंजाब, चड़ीगढ़ के 21 सीटों पर मिले मत थे, बाकी के 411 सीटों पर उसे केवल 46.7% मत ही मिले. यानी औसतन 14000.
MCD चुनाव के सदमे से उभरी नही है आप
दिल्ली नगर निगम(MCD) चुनाव में मिली हार का सदमा भी आप का साए की तरह पीछा कर रही है. विधानसभा चुनाव-2015 में 70 में से 67 सीटें जीतने वाली आप को दो वर्ष हुए नगर निगम चुनावों में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. MCD के चुनाव में आप को केवल 49 सीटें ही मिली थी. वही 10 साल से MCD पर राज कर रही भाजपा को 272 सीटों में से 181 सीटों पर जीत मिली. इस चुनाव में कांग्रेस को 31 सीटें मिली थी. बीतें नगर निगम चुनावों से इस परिणाम की तुलना करें तो परंपरागत रूप से भाजपा-कांग्रेस के बीच होने वाले पिछले चुनाव से भाजपा को जहाँ 43 सीटें अधिक मिली थी, वही कांग्रेस को 46 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा. MCD में भाजपा की यह जीत काफी बड़ी मानी जाती है. एक दशक के एंटी-इंकमबेंसी था, वही दूसरी तरफ प्रचंड बहुमत से बैठी आप सरकार. लेकिन सभी जीते हुए उम्मीदवारों को बदल कर भाजपा चुनाव लड़ी और चमत्कारिक जीत से तीनों नगर निगमों पर उसका कब्ज़ा है.
आप के चुनावी मुद्दें में दम नही
आप दिल्ली में इस बार पूर्ण राज्य की दर्जा के मांग के साथ चुनावी मैदान में उतरी है. आप नामांकन वापसी के दिन तक कांग्रेस से गठबंधन की आस में लगी रही. गठबंधन की इन कोशिशों से आप के चुनावी अभियान को काफी नुकसान झेलना पड़ा. दिल्ली की जनता के नज़र में पहले ही अपना विश्वास खो चुकी आप को सामान्य लोगों ने शक की निगाह से देखना शुरू कर दिया. पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग भी दूर-दूर तक न तो चुनावी मुद्दा बनती नज़र आती है, न ही जनता के बीच में इसे कोई सीरियस मुद्दा मानने को तैयार है. सबको पता है कि यह मांग किसी भी हाल में पूरा होने वाला नही है. दिल्ली को पूर्ण राज्य देने का मतलब है देश की राजधानी को कही और ले जाना जो किसी भी हाल में संभव नही है. दरअसल पूर्ण राज्य के मांग के जरिये केजरीवाल जनता को यह समझाने की कोशिश कर रहे है कि बगैर पूर्ण राज्य के दिल्ली का विकास संभव नही है और हर मर्ज की दवा पूर्ण राज्य का दर्जा ही है. यही वजह है कि दिल्ली की जनता के लिए किये अपने कार्यों की वजाए आप अपने काम न करने की मज़बूरी के नामपर दिल्ली का वोट लेना चाहती है. कायदे से आप को अपने किये कार्यों को बताना चाहिए. वह अलग बात है कि बीते 4.5 वर्षों के शासन में वह अपना एक भी चुनावी वादा पूरा नही कर सकी है.
अब ऐसे समय में, जबकि दिल्ली का चुनाव बेहद नजदीक है, हर पार्टी चुनावी मैदान में वोटरों को रिझाने में जुटी है, आप के लिए यह चुनाव करो या मरो जैसी स्थिति सा है. कांग्रेस अपनी खोई ज़मीन दुबारा पाने के लिए संघर्ष कर रही है, वही आप आंदोलन से उपजी संवेदनाओं के बल पर पाई लोकप्रियता को बचाने की जद्दोजहद करती नज़र आ रही है. कांग्रेस के लिए तो फिर भी बाकी के राज्यों में कुछ संभावनाएं बची है, आप के लिए दिल्ली के सिवा कुछ नही. देखना है इस महत्वपूर्ण चुनाव में आप बची रह पाती है या फिर झाडू आप की ही राजनीति को साफ़ कर देती है.