हरदिल अज़ीज़ मुकेश
दा के गाए एक गीत के बोल कुछ इस तरह है..
“लिखे जो ख़त तुझे,
वो तेरी याद में,
हजारों रंग के, नजारे मिल गए,
सवेरा जब हुआ, तब
फुल खिल गए,
जो रात आई तो,
सितारें बन गए.”
ये गीत महज किसी
गीतकार के ख्यालों में आए शब्द नही, प्यार में डूबे दों माशूकाओं की खुबसूरत
दुनिया को जताने का तरीका भी बताता है. लेकिन तकनीकी (Technology) और इंटरनेट के सामाजिक मंचों (Social Networking
sites-Facebook/Twitter) ने इश्क-मोहब्बत की खूबसूरत "प्रेम पत्रों
की दुनिया" को बड़ी बेरहमी से उजाड़कर, इसे आज चैटिंग, ईमेल में बदल दिया है.
कुछ वर्षों के
बाद आपको प्रेमी जोड़े के इस बदले मिज़ाज को किसी गायक के गाए गीतों में सुनने को मिल
जाए तो कोई आश्चर्य नही....
"लिखे जो E-mail
तुझे, वो तेरी याद में,
दर्जनों रंग के,
दिमाग में J भर गए,
Reply में जब,
(Y) आया तो,
What's up पर, चैटिंग की तैयारी में जुट गए"
इतने ही शब्दों
में feeling over!!.......दरअसल, ज़माना बदला तो प्यार जताने का तरीका भी बदल गया. जिस तरह अपने स्नेही जनों को लिखे जानेवाले पत्रों का
रिवाज बंद हो रहा है, उसी तरह प्रेम पत्र भी अब इतिहास की पन्नो में कैद होते जा
रहे है. इन सबसे अब इश्क़ की दुनिया में वो रूमानियत नही रही, न ही प्यार के
गुदगुदाने, हंसाने, रुलाने वाली बात और न ही सहेजकर रखनेवाली खुबसूरत यादों की
दास्तान!
दरअसल प्यार हर
पल सुकून चाहता है! उसे नजदीकियां पसंद है! प्यार अँधा होता है लेकिन उसे दीवानगी
की हद तक दिलों को पढ़ने का जूनून होता है!.....और प्रेम पत्र! इस जूनून की जिद को
शांत करता है. ये पत्र महज कागज के टुकड़ों पर लिखे चंद शब्द नही होते, ये तो बिना
शोर मचाए सिसकियाँ लेने, मोबाइल के बटन और कम्प्यूटर के कीपैड दबाने की जगह, करवट बदल बदलकर पढ़े जाने अनमोल अक्षरों
होते है, जो दो दिलों की दूरियों को पाटते है, उसे शब्दों से नजदीक लाते है, जुदाई
के दर्द को महसूस करते है, लिखे शब्दों से उसे कम करते है! प्रेम पत्र बाकी कागजों की तरह घर में नही रखे जाते, उससे तो
हर पल उसी तरह नजदीकियां बनी रहती है, मानो वो पत्र नही, प्रेमी है.
ऐसा नही है कि
बिना पढ़े लिखे प्रेमियों में प्यार की वो खनक नही होती जो प्रेम पत्र लिखने वाले
प्रेमियों में होती है! उनमे भी वही एहसासों का समंदर बहता है, जो पत्र लिखनेवालों
में! लेकिन पत्र पढ़ने, लिखने वाले जिस तरह भावनाओं में गोते लगाते रहते है और
जिसके मौके उन पन्नो को पलटने पर उन्हें हर बार मिलते है, उनसे जरुर वे महरूम हो
जाते है.
लेकिन अब! ......स्थितियां
पूरी तरह बदल सी गई है! पत्र लिखना तो दूर मैसेज में लिखे जाने वाले शब्द भी अधूरे
होते है. कहे तो “प्रेम पत्र” शब्द अपनी अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहा है! छोटे
शहरों में बेपनाह मुहब्बत करनेवाले चंद प्रेमियों ने इसे जिन्दा रखा हुआ है, शहरी
प्यार ने तो इसे दफना ही दिया है!
प्रेम पत्रों में
लिखे शब्दों में जुदाई का रंग देखना, उसे शिद्दत से महसूस करना तो दूर की बात रही, दो दिलों की दूरियों भी अब चंद मिनटों की
मेहमान रहती है! तकनीकी की वजह से संवाद की फटाफट सेवा झटपट रिश्तों को “I Like u” “ <3 ” जैसे कुछ
अक्षरों व संकेतों से बनाती तो है, उसे उतनी ही
जल्दी खत्म भी कर दे रही है! अब तो दर्द और दिल की बात चिठ्ठी में उकेरे शब्दों से नही...बस चंद अक्षरों में निपटा दी जाती है. वर्षों का प्यार ख़त्म हो जाता, बस यही लिखकर "its
over" "don't disturb me furthr" “I hate u”..
.......
पता नही, मुहब्बत की मैसेजवाली दुनिया में प्रेम पत्रों के बगैर कैसे प्रेम घुट-घुटकर जिन्दा है! शायद उसकी नियति यही है या हो सकता
है, रफ़्तार में दौड़ती दुनिया से कदम मिलाने के चक्कर में प्रेमियों को अपनी जज्बातों को
शब्दों में पिरोने का वक़्त नही मिलता हो!
अज्ञात कवि के
शब्दों में...
वो पत्र पर प्रेम
की स्याही नीली, कागज़ की खुशबू भुल गए,
पढती आँखें आंसू
से गीली, रह रह कर पढ़ना
भुल गए,
जब से हुए है
प्रेम पत्र डिजिटल, लोग प्यार की भाषा भुल गए...!
लेकिन सच पूछे तो प्रेम की परवाह करनेवाले लोगों की इस बेपरवाही से इश्क मुहब्बत की दुनिया को बहुत नुकसान झेलना पड़ रहा है! ज्यादा टेंशन नही लेने का....शुरू कर दीजिए आज से ही अपने प्रेमी को पत्र लिखना..पते बदलकर :)
©abhishek
क्या लाजवाब लिखते हैं भईया....
ReplyDeleteनोस्टाल्जिया,व्यंग्य,बदलती तस्वीर और
दर्द सब एक साथ वयान किया है
आपने....
बहुत खूब
:)बस जिन्दगी में मिले तजुर्बे काम आ गए....राह चलते चलते शब्द बनकर फूट पड़े
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