27 जुलाई, 2015 की शाम! रोजाना की तरह छोटे भाई का फ़ोन
आया. अमूमन बातचीत की शुरुआत एक दुसरे का हाल-चाल जानने से होती थी. मगर उस दिन
फ़ोन उठाते ही आवाज़ आई, “भैया एपीजे
अब्दुल कलाम का देहावसान हो गया. वे शिलांग में भाषण देते वक़्त गिर पड़े और अस्पताल
ले जाने के कुछ ही समय बाद चिकित्सकों ने उनकी मौत की पुष्टि कर दी.” यह जानकर सदमा सा लगा. पहले से ही बीमार शरीर
से पस्त पड़ा था, खबर सुनते ही लगा, कोई
बेहद अज़ीज़ साथ छोड़कर अचानक चला गया. कमोबेश यही हाल उस हर हिन्दुस्तानी का था,
जिसके ह्रदय में हमेशा कलाम नाम सुनते ही एक रचनात्मक तरंग की
प्रवाह प्रवाहित होने लगती थी. न जाने लाखों चेहरे उस व्यक्ति के खोने के गम में
गमगीन हो गया, जो उसे आजीवन अपने व देश की बेहतरी के लिए
सदैव सपने देखने और कर्म करने को प्रेरित करता रहा. जाति, धर्म,
क्षेत्र के परे वे तमाम लोग उदास थे, जिसे डॉ.
कलाम ने अपने व्यक्तित्व व कृतित्व से जीवन की तमाम दुश्वारियों के बावजूद सफलता
के चरमोत्कर्ष पर पहुँचने की सिख दी. किसी ने खूब लिखा, वे
मरे तो लोगों के आँखों में आंसू थे लेकिन तालियाँ बजी- वाह रे भारत माता के लाल!
क्या शानदार जीवन जिया!
कलाम
बच्चों व युवाओं के अत्यंत प्रिय मित्र व मार्गदर्शक थे. कितना प्यार उमड़ता था!
कितना विश्वास था कलाम की बातों में, यह उनकी सभाओं में गए लोग बखूबी जानते है. हमारी
पीढ़ी के युवाओं के सबसे जीवंत आदर्श. अंतिम साँस लेते वक़्त तक भी वे सक्रीय रहे. यह
हम सबके लिए प्रेरणादायी घटना है कि जिस उम्र में अमूमन लोग धार्मिक यात्राओं व घर
के बच्चों के बीच समय गुजारने में ज्यादा दिलचस्पी लेते है, वे सदैव एक आदर्श
शिक्षक की तरह, एक संवेदनशील कर्मयोगी की भांति भारतभक्ति में लीन रहे, देश के लिए
काम करते रहे. सेवानिवृत्ती के बाद मानों उनके जीवन का लक्ष्य ही देश के नौनिहालों
को भारत का एक बेहतर भविष्य बनाने हेतु प्रेरित करना हो गया था. राष्ट्रपति बनने
के बाद भी उन्होंने इस कार्य को नही छोड़ा. देश के कोने कोने में जाकर वे युवाओं,
बच्चों को संबोधित करते रहे. उनके हर भाषण में युवामन के जिज्ञासु प्रवृतियों को भारत
के ज्वलंत समस्यायों के समाधान खोजने हेतु अपना तन-मन समर्पित करने को प्रेरित
करनेवाली बातें होती थी.
युवाओं
की उर्जा में अटल विश्वास
डॉ. कलाम
देश की समस्याओं से परिचित थे. इन समस्याओं की वजहें जानते थे. वे अपनी पुस्तक
“तेजस्वी मन” में लिखते है, “हमारे पास श्रेष्टता को हासिल करने की योग्यता है.
हमारे पास विश्वास और ज्ञान का ऐसा अद्भुत मिश्रण है जो हमें इस पृथ्वी के अन्य
देशों से अलग ला खड़ा करता है. मै यह भी जानता हूँ कि इन अनूठी क्षमताओं का लाभ नही
उठाया गया है; क्यूंकि हमें दूसरों की दासता स्वीकारने और शांत पड़े रहने की आदत सी
पड़ चुकी है”. यही से कलाम को अपने जीवन का मंत्र मिला “लोगों को यह बताने से बेहतर
बात और क्या होगी कि वे जो ख्वाब देखते है वे सच हो सकते है, यह कि उनके पास वह
सबकुछ हो सकता है जो अच्छे जीवन के लिए जरुरी है- स्वास्थ्य, शिक्षा, अपनी मंजिल
तक पहुँचने की आज़ादी; और इन सबसे बढ़कर शांति.” हमसे कहाँ गलती हो रही है? वह क्या
है जिसे ठीक करने की जरुरत है? यह कैसे हो सकता है? जैसे सवालों को युवाओं के बीच
ले गए और अपने व देश के साझा स्वप्नों के लिए “आगे बढ़ो” का संदेश दिया! उनका मानना
था कि रचनात्मक विचारों वाले युवा भारतियों के विचार स्वीकृति की बाट जोहते जोहते
मुरझाने नही चाहिए. उन्हें उन नियमों से ऊपर उठाना ही होगा जो सुरक्षा के नामपर
उन्हें डरपोक बनाते है और व्यापार व्यवस्था, संगठनात्मक व्यवस्था तथा समूह व्यवहार
की आड़ लेकर उन्हें उद्यम में जुटने से हतोत्साहित करते हैं. एक लकीर का फ़क़ीर न
बनकर कलाम युवाओं से अपनी उर्जा का सर्वोच्च सदुपयोग हेतु कठोर परिश्रम की सभी
सीमाओं को लांघने की बात किया करते थे. अपने कॉलेज के दिनों का एक वाकया सुनाते
हुए कलाम कहते है कि जब सब कुछ दाँव पर लगा होता तभी मानव मेधा प्रज्ज्वलित हो
उठती है और उसकी क्षमता कई गुना बढ़ जाती है. एक काम को चुन लेने के बाद व्यक्ति को
उसमें डूब जाना चाहिए. आप चाहे सफल होंगे या असफल, यह जोखिम तो हमेशा रहेगा. लेकिन
इस डर से आपको काम नही रोक देना चाहिए. यदि आप असफल भी होंगे तो भी भविष्य के लिए
आपके पास अनुभव भी तो होगा. जन्म की प्रक्रिया ही अपने आप में जोखिम भरी है. लेकिन
फिर भी नवजात साँस लेने लगता है और जीवन में आगे बढ़ता है अपनी तमाम उम्मीदों व
अपेक्षाओं के साथ. अपने भीतर असफलता की चिंता छोड़ सफलता के विचार पैदा करे, सफलता
आपके कदम चूमेगी.
डॉ. कलाम
अपने अंतिम वर्षों में इस बात को लेकर बेहद चिंतनशील थे कि युवा मेधाओं को किस
प्रकार प्रज्जवलित किया जा सकता है? युवाओं को राष्ट्र-निर्माण की चुनौती से कैसे
जोड़ा जा सकता है? उनका भरोसा था कि नए सिरे से जुटाई ताकत के साथ अपनाई गई समग्र
परिकल्पना ही युवा शक्ति को देश की समस्त चुनौतियों के समाधान हेतु कार्य के लिए
प्रेरित करेगी. वैसे समय में जबकि देश भ्रष्टाचार के आगोश में समाया दीखता है, सार्वजनिक
जीवन में पारदर्शिता के प्रति बड़ा आग्रह था डॉ. कलाम का. वे कहते थे, हम सभी को,
खासकर युवापीढ़ी को, पारदर्शी भारत के निर्माण के लिए आन्दोलन करना चाहिए.
पारदर्शिता कलाम की नज़रों में विकास की सबसे मुख्य शर्त थी.
स्वप्न,
केवल स्वप्न
डॉ. कलाम
जिससे भी मिलते, जहाँ जाते, उनका एक विशेष आग्रह होता था, ‘सपने देखों”. यह बात वे
बड़े विश्वास के साथ कहते थे. उसके पीछे उनका तर्क होता था, “स्वप्न, स्वप्न और
स्वप्न. स्वप्न ही विचार बनते है और विचार ही कर्म के रूप में हमारे सामने आते है.
अगर स्वप्न ही नही होंगे तो क्रांतिकारी विचार भी जन्म नही लेंगे; और विचारों के न
रहने से कोई कर्म भी सामने नही आएगा. हालाकि कभी कभी कुछ असफलताएं आ सकती है, देरी
हो सकती है, लेकिन स्वप्नों पर ही सफलता टिकी होती है.” अभिभावकों व अध्यापकों से
वे हमेशा आग्रह करते थे कि वे बच्चों को स्वप्न देखने की इजाज़त दें. उसे पूरा करने
के लिए प्रोत्साहित करे. बालमन ही नही युवा मष्तिष्क भी उनके दिखाए इस स्वप्नों की
सीढ़ी चढ़कर न जाने कितने कीर्तिमान गढ़ डाले. “अग्नि की उड़ान” पुस्तक कलाम के उन्ही स्वप्नों
के पूरा होने की कहानी ही तो है, जो रामेश्वरम के एक बेहद सुविधाविहीन परिवार में
जन्मा लाल भी अपने पुरुषार्थ से एक दिन भारत का ध्वज पताका पुरे दुनिया में फहराने
का देखा करता था.
भविष्य के
भारत कैसा हो, मानो अंतर्मन की बात युवाओं से कहते हुए “तेजस्वी मन” पुस्तक में ही
कलाम लिखते है, भूमंडलीय व्यापार व्यवस्था, मंदी, मुद्रास्फीति, घुसपैठ, अस्थिरता
जैसी तमाम समस्यायों से कही ज्यादा चिंता मुझे
उस जड़ता की है जिसने राष्ट्रीय मानस को जकड़ा हुआ है; मै पराजय की मानसिकता को लेकर
बहुत चिंतित हूँ. मेरा मानना है कि जब हमें अपने लक्ष्यों पर भरोसा होता है तब हम
जो भी सपना देखते है वह साकार हो सकता है. हमें अपने उच्च धरातल के प्रति जागरूक
बनकर स्वयं को एक विकसित राष्ट्र के नागरिक के रूप में देखना चाहिए. हमारी महान
सभ्यता रही है और यहाँ जनमे हममें से प्रत्येक को इस सभ्यता के ज्ञान पर भरोसा
करना चाहिए. हमारे धर्मग्रन्थ बताते है कि हमारे और विश्व के अन्य देशों के बीच
कोई अवरोध नही है. अब आपको खुद ही दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा.
2020 में
विकसित भारत का स्वप्न देखने हेतु डॉ. कलाम युवाओं से इस स्वप्न को पूरा करने हेतु
“मै क्या दे सकता हूँ” मुहीम चलाते रहे. अपने अपने सामर्थ्य का समुचित इस्तेमाल
बेहतर भारत के लिए करने की युवा ठान लें, उसके लिए अपने जीवन का छोटा अंश समर्पित
करें, पूर्ण मनोभाव से देश के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे. ऐसा देश के
युवा करेंगे तो भारत विश्व की सबसे सामर्थ्यशाली देश बन सकता है. उनका यह स्वप्न
अभी अधुरा है. डॉ. कलाम इस दुनिया से रुखसत भले हो गए हो, उनके विचार, उनके सपने
अभी भी जीवित है, वे हमारे लिए सदैव पथप्रदर्शक बने रहेंगे.
कलाम
दुबारा आने का वादा किए ढ़ेर सारे स्वप्नों की पोटली सौंपकर हमारे बीच से सशरीर चले
गए, यह कहकर, “हे ईश्वर! मुझे भारत का गौरवान्वित नागरिक होने के नाते इसकी धूल
में मिल जाने देना ताकि मैं दोबारा जन्म लेकर इसकी यशोगाथा का आनंद ले सकूँ.” यह
भागीरथी दायित्व हम सबपर है कि जब कलाम दुबारा आए तो पुरे विश्व में भारत के
यशोगान सुने, एक गौरवान्वित नागरिक होने की अनुभूति हो सकें. इसके लिए और सपने
देखने पड़ेंगे, और अधिक मेहनत करनी पड़ेगी. यही अपने सच्चे मित्र कलाम के प्रति
सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
aana to INDIA hi aana KALAAM
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