गाँधी और बिहार...ये दो शब्द जब ध्यान आते है
तो निलहों के विरूद्ध हुए चंपारण आंदोलन का जिक्र जरुर होता है। लेकिन चंपारण
आंदोलन केवल निलहों के अन्याय के विरूद्ध संघर्ष तक सिमित नही था। 15 अप्रैल 1917 को जब गाँधी चंपारण के इलाके में गए तो उनका सामना राजनीतिक गुलामी के साथ साथ अशिक्षा,गरीबी, गंदगी से भी हुआ। गाँधी के
शब्दों में कहे तो लोगो का अज्ञान दयनीय था। गााँवो के बच्चे मारे-मारे फिरते थे अथवा
माता-पिता दो या तीन पैसे की आमदनी के लिए उनसे सारे दिन नील के खेतो में मजदूरी
करवाते थे।