September 30, 2013

लालू की सजा से दुखी जानवर समाज ने किया संघर्ष का एलान


चारों तरफ़ मायूसी का मंज़र! रोते विलखते जानवर! पशु नेताओं के चेहरे पर परेशानी की लकीरे! सबके सब गुस्से में! कुछ ऐसा ही नज़ारा देखने को मिला नई दिल्ली स्थित चारा भवन में! मौका था, लालू जी के समर्थन में जानवरों के प्रेस कांफ्रेंस का!

आज कथित चारा घोटाले में लालू यादव को दोषी ठहराए जाने पर जानवरों के सबसे शक्तिशाली संघ “प्रगतिशील जानवर संघ” ने अपना रोष प्रकट किया है. संघ ने अपने एक बयान में कल देश के सभी जानवरों से भारत बंद का आह्वान किया है.

अपने लगातार बहते आंसू को रोकते हुए संघ के अध्यक्ष कल्लू भैंस ने एक्सक्लूसिव बयान देते हुए बताया, “लालू जी जानवर से बड़ा प्यार-मोहब्बत वाला रिश्ता रखते थे. यहाँ तक कि अपनी पत्नी भी खोजी तो उसमे भी जानवरों के प्रति प्रेम झलका. राबड़ी तो छोड़ो, आज के दिन कोई मख्खन नाम के भी लड़की से शादी नही करेगा”.


इतना कहते ही कल्लू जोर से रो पड़ा. ढांढस बढ़ाते हुए मैंने उससे अपनी बात कहना जारी रखने को राजी किया. उसने आगे कहा, “जहाँ सब नेता अपना बीवी बच्चा तक ही सिमित रहता है, वहां लालू जी जानवरों के लिए पूरा खटाल खोलकर रखे हुए थे पटना में. कै गो बच्चा तो उनकर जैसा बड़का आदमी के हाथ में खेलकर बड़ा हुआ. लालू जी कुत्ता बिल्ली पोसने वाले सामंती लोग नही थे, बल्कि भैंस, गाय पालते थे. उ त घोड़ा पर भी नही चढ़ते थे. मन होता था तब भैंस पर चढ़कर टहल आते थे अगल-बगल के गाँव से. कौनो नेता है देश में जे भैंस के सवारी करता हों?  हमर समाज आज एतना दुखी है कि हम का बताए! वश चले त राहुल जी से कहवा के उ पन्ना फाड़के फेंकवा दे जेमे सजा के बात लिखल होए.”

लालू जी के योगदान की चर्चा छिड़ते ही हर तरफ से आवाज आने लगी. रुंधे गले से धनवंती गाय बोली, “भारत में आम आदमी की कोई चर्चा भी नही करता, वहां लालू जी ने हमें चर्चा में लाकर सम्मान दिया. लालू जी से पहिले सबलोग हम सबके गोबरे समझता था. दुह लिए, छोड़ दिए. लेकिन लालू जी समाज के बड़े हितैषी थे. जे समय लोग सब स्कूटर पर चढ़ने की औकात भी नही रखते थे, उ ज़माना में स्कूटर पर चारा ढोकर ले गए. बताईए,  इ कौनो मामूली बात है. भला हम सबनी के खान-पान के चीज एतना सम्मान से कोई ले जाता था पहले? फेंक दिया जूठा रोटी और हम सब खा लेते थे चुपचाप. कही हो हल्ला नही होता था.”

लालू यादव को मसीहा बताते हुए फटुआ बैल ने कहा कि “लालू जी ने तो हम शोषितों के हित में इ सब काम किया. सरकारी चारा तो जानवर समाज के पूंजीपति वर्ग के ही नसीब में था. नेता लोगवन इसमें भेदभाव करते थे. इन्होने बराबरी लाने के लिए अपना कीमती दिमाग लगाया.”

संघ ने अपने संयुक्त बयान में कहा है कि “चारे की वजह से भले ही लालू जी को बेचारा बनाने में कोर्ट सफल रही हो, लेकिन हम बड़े दुखी है! लालू जी हमरा समाज के बड़का शुभचिंतक है. उनका न रहने से हम सब अनाथ हो गए. अब कौन हमर चिंता करेगा? हम लोग जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में जाकर चक्का जाम करेंगे. लालू जी को नही छोड़ा तो फिर जो बवाल हम सब खूंटा उखाड़ने के बाद करते है, वही देश भर में छूटने तक लगातार रिपीट करेंगे.”

जेल मेन्युअल के मुताबिक अभीतक जेल प्रशासन सजा के मुताबिक खाने की व्यवस्था नही करता था. लेकिन संघ ने अपने बयान में जेल प्रशासन से खाने के मेनू में लालू जी के सेहत का ख्याल रखते हुए व्यापक सुधार की मांग की है. संघ की सूचि के अनुसार, नाश्ते में “भूसे का हलवा व सुखल ठठेरा”, लंच में “पुआल और मकई के खल्ली की मिश्रित दलिया” व डिनर में “हरे घास के पराठे” देने की मांग की है. स्वाद बदलने के लिए कभी कभी “हरी जनेरा”, “सरसों की खल्ली” देने के साथ साथ पर्व त्यौहार के मौके पर विशेष रूप से बिहार में जानवरों को मिलने वाले सबसे “महंगे” मिठाई “सुधा की खल्ली” भी मुहैया कराने का आग्रह किया है. संघ ने बैकडोर से बांस का पत्ता, ख़राब अनाज की मोटी रोटी भी देने की व्यवस्था करने का एलान किया है. साथ ही सेहत की चिंता को देखते हुए कैल्शियम के टीकाकरण करवाने की मांग भी सरकार से की है.

संघ के तेवरों से साफ़ है, जानवर समुदाय इस घटना से आहत है और आनेवाले दिनों में इसको लेकर संघर्ष करने का एलान कर सकता है. नाम न छपने की शर्त पर संघ के एक ने बताया कि जनता अगर हमारे नेता को नकारेगी तो जानवर आनेवाले चुनाव में एकतरफ़ा वोटिंग की घोषणा कर सकते है! भले ही कांग्रेसी साथ छोड़ दें, हम लालू जी के साथ है. लालटेन को भाकुआने नही देंगे.


राजनीतिक पर्यवेक्षक इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया देने से बच रहे है. वही राजनीतिक दलों में बेचैनी साफ़ देखी जा सकती है. एक राष्ट्रीय दल के नेता ने कहा कि “मान लीजिए कि सब बूथ पर चार-पांच गो तगरा उज्जझट, बिगड़ल बैल या भैंस तैनात हो गया तो बताईए! कोई वोट गिरा पाएगा? कोनो पार्टी जीत पाएगा चुनाव?  सारा प्रचार धैल के धैल रह जाएगा! जानवर समाज की चिंता वाजिब है. संसद का विशेष सत्र बुलाकर इनकी सजा माफ़ी का एलान किया जाना चाहिए.  

(यह विशुद्ध रूप से व्यंग्य है.) 

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