बिहार के वैशाली और पूर्वी चंपारण जिलों के हजारों गांवों के लोग एक रेल लाईन के लिए लगभग 5 दशक से इंतजार कर रहे थे. ढ़ोल-बाजे और लंबे-चौड़े भाषणों के साथ उस इंतजार के खत्म होने की घड़ी आई, जब 2004 में इस रेलवे लाईन का शिलान्यास हुआ. उम्मीद जगी कि अब जल्द छुक-छुक करती रेल गाँव के बीच से गुजरेगी. लेकिन अफ़सोस, उम्मीद की वह लौ जलने से पहले ही बुझ गई है.
जी हाँ हम बात हाजीपुर-सुगौली रेलवे लाईन की ही कर रहे है, जिसका शिलान्यास तो हो गया, उद्घाटन कब होगा, किसी को पता नही. रेल मंत्रालय को भी नही. हाल में मैंने जब प्रधानमंत्री कार्यालय में RTI के माध्यम से यह जानकारी मांगी कि यह रेल लाईन कब तक बनकर तैयार होगा और कबसे इसपर रेल परिचालन होगा तो रेल मंत्रालय के जबाब से मै सन्न रह गया. रेल मंत्रालय ने साफ़ साफ़ कहा कि पर्याप्त फण्ड के अभाव में इस रेल लाईन का निर्माण नही हो सकता, इसलिए इसके पूरा होने और रेल परिचालन का समय बताने का सवाल ही नही उठता |
जी हाँ हम बात हाजीपुर-सुगौली रेलवे लाईन की ही कर रहे है, जिसका शिलान्यास तो हो गया, उद्घाटन कब होगा, किसी को पता नही. रेल मंत्रालय को भी नही. हाल में मैंने जब प्रधानमंत्री कार्यालय में RTI के माध्यम से यह जानकारी मांगी कि यह रेल लाईन कब तक बनकर तैयार होगा और कबसे इसपर रेल परिचालन होगा तो रेल मंत्रालय के जबाब से मै सन्न रह गया. रेल मंत्रालय ने साफ़ साफ़ कहा कि पर्याप्त फण्ड के अभाव में इस रेल लाईन का निर्माण नही हो सकता, इसलिए इसके पूरा होने और रेल परिचालन का समय बताने का सवाल ही नही उठता |
विदित हो कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने हाजीपुर सुगौली रेलवे लाईन बनाने की मांग को अपनी स्वीकृति दी थी. इस रेल लाईन निर्माण कार्य का शुभारंभ 10 फरवरी, 2004 को स्वयं तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वैशाली आकर किया था. इस रेलवे लाईन में कुल 13 स्टेशन बनाने का प्रस्ताव शामिल था जिसमं सरैया, लालगंज, वैशाली, घटारो, केसरिया, अरेराज और साहेबगंज शामिल थे.
संसदीय दस्तावेज बयां करते है धीमी निर्माण की असली हकीक़त
लोकसभा में 14 मार्च 2013 को पूछे गए एक प्रश्न(संख्या-2886) के जबाब में रेल राज्य मंत्री अधीर रंजन चौधरी ने 148 किमी लंबे इस रेल मार्ग की अनुमानित लागत 528.65 करोड़ बताया था जिसपर मार्च, 2012 तक 187.72 रुपए खर्च किए जा चुके थे. इस सवाल के जबाब में संसद में यह बताया गया था कि काम को दो स्तर पर पूरा करने पर काम किया जा रहा है-पहला, हाजीपुर-सुगौली के बीच के 35 किमी में काम पूरा होने की स्थिति में पहुँच गयी है. छोटे-बड़े पुल को बनाने का काम अपने अंतिम दौर में है. ट्रैक लिंकिंग का भी काम जारी है. वही दुसरे चरण में वैशाली-सुगौली के बीच के 115 किमी में भूमि अधिग्रहण सहित अन्य प्रारंभिक काम जारी है. इसमें यह भी कहा गया है कि इस परियोजनाओं के पूरा होने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है. प्रयाप्त फण्ड के अभाव में काम तेज़ी से नही आगे बढ़ रहा है, जिसके लिए राज्य के सहयोग के माध्यम से अतिरिक्त बजटीय संसाधनों के सृजन करने का प्रयास जारी है. इस परियोजनाओं को पूरा करने में रेल विकास निगम लिमिटेड (रेल विकास निगम लिमिटेड) की मदद के साथ साथ वानिकी और अन्य मंजूरी के पूरा होने में तेजी लाने के लिए राज्य सरकार द्वारा प्राथमिकता से कदम उठाए जाने की अपेक्षा की गई है. (देखे- http://164.100.47.132/LssNew/psearch/QResult15.aspx?qref=137238)
9 अगस्त 2012 को पूछे गए एक अन्य प्रश्न(संख्या-333) के जबाब में रेल राज्य मंत्री के.एच.मुनियप्पा द्वारा यह बताया गया था कि 148 में से 119 गांवों में भूमि अधिग्रहण का काम पूरा हो गया है. 177.72 करोड़ रुपए मार्च 2012 तक खर्च हो चुके है. 2012-13 सत्र के बजट में इसके लिए 10 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. (देखे- http://164.100.47.132/LssNew/psearch/QResult15.aspx?qref=128603)
रेल लाईन की मांग है दशकों पुरानी
संसदीय दस्तावेजों की माने तो सर्वप्रथम इस रेल लाईन की मांग पहली बार लोकसभा में मुजफ्फरपुर के सांसद स्व. नवल किशोर सिन्हा ने 1971 में उठाया था. 1978 में नई दिल्ली में हुई विशाल किसान रैली में उस समय के बड़े किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने भी इस मांग को रखा था ताकि आवागमन के साधन होने से किसानों को फायदा हो सकें.इस मांग के बाद "रेल या जेल" नाम से जिला मुख्यालयों पर खूब प्रदर्शन भी हुए थे. इस आंदोलन का यह प्रभाव हुआ कि तत्कालीन रेल मंत्री केदार पाण्डेय ने 1981 में इस मांग को पूरा करने का आश्वासन दिया, लेकिन उसके बाद भी कुछ ठोस नही हो पाया. 19 फरवरी1997 को तत्कालीन रेल मंत्री ने सरैया कोठी में आयोजित एक जनसभा में यह कहा था कि सर्वे का काम जारी है. रिपोर्ट के मुताबिक पासवान ने इसके लिए 100 करोड़ रुपए की परियोजना भी तैयार होने की बात कही थी. बाद के समय में बज्जिकांचल विकास पार्टी सहित अनेक स्थानीय राजनीतिक दलों व सामाजिक संगठनों ने इस मांग के पक्ष में आवाज़े उठाई. यह सिलसिला शिलान्यास होने तक (10 दिसंबर 2004) तक जारी रही.
रेल लाईन बनने से क्षेत्र के विकास को मिलती गति
पर्यटन का विकास
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। वैशालिगढ़ जैन और बौद्ध धर्मावलंबियो के लिए काफी महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है. भगवान महावीर का वैशाली स्थित बासोकुंड(कुंडग्राम) में ही जन्म हुआ था. इस वजह से जैन धर्म के मतावलंबियों के लिए वैशाली बेहद पवित्र स्थान माना जाता है. महात्मा बुद्ध का भी वैशाली से बड़ा गहरा संबंध रहा है. भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ. महात्मा बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्वपूर्ण था. अतिमहत्वपूर्ण बौद्ध एवं जैन स्थल होने के अलावा यह जगह पौराणिक हिंदू तीर्थ एवं पाटलीपुत्र जैसे ऐतिहासिक स्थल के निकट है. इन वजहों से यह विश्व भर के तीर्थयात्रियों व पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. वैशाली के अलावा यह रेलवे लाईन प्रसिद्ध अरेराज धाम और दुनिया के सबसे बड़े बुद्ध स्तूप वाले स्थान केसरिया को भी जोड़ती है , जहाँ देश-विदेश से लोग आते है. अगर वैशाली-सुगौली रेलवे लाईन बन जाता तो पर्यटन की दृष्टि से यह क्षेत्र विकसित हो सकता है, जिससे अंततः आर्थिक उन्नति होती.
किसानों को होता फायदा
वैशाली, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण के हजारों गाँव इस रेल लाईन से जुड़ जाते. इससे कृषि उत्पादों को बाज़ार में पहुँचाने, कृषि संबंधी अन्य कार्यों में सहूलियत होती. रेलवे से आवागमन ज्यादा सुरक्षित और कम खर्चीला है. कृषि उत्पादों को खरीदने-बेचने में रेलवे का उपयोग धरल्ले से हो सकता था.
यह सच है कि भूमि अधिग्रहण में दिक्कतें आ रही है. कई अन्य प्रकार की समस्याओं से भी रूबरू इस परियोजना को होना पड़ रहा है, लेकिन यह सुनकर थोड़ा अटपटा लगता है कि जिस बिहार ने देश को सर्वाधिक आठ रेल मंत्री दिए, वही के लाखों जनता की दशकों पुरानी मांग अबतक पूरा नही की जा सकी है. यहाँ तक कि इस क्षेत्र के स्थानीय सांसद रेल मंत्री भी रहे. पिछले रेल मंत्री भी इसी क्षेत्र के दामाद थे. कई प्रभावशाली मंत्री भी बने केंद्र में, लेकिन इस परियोजना को पूरा करने की कोई ठोस पहल नही की गई.
जिस तरीके से पिछले 10 वर्षों में इस बहुप्रतीक्षित रेलवे लाईन पर काम हुआ है, उसे देखकर कोई भी अंदाज़ा लगा सकता है कि सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधि इसकों लेकर संजीदा नही है. वे केवल निहित राजनीतिक स्वार्थ के लिए संकेतात्मक आवाज़ उठाते है और फिर चुप्पी साध लेते है. यहाँ तक कि परियोजना के शिलान्यास के वक़्त रेल मंत्री रहे बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री विलंब से संबंधित केवल शिकायती चिठ्ठी भेजकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते है. फ़िलहाल 2500 वर्ष पहले लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाली धरती लोकतांत्रिक देश में अपनी जायज मांग पूरा होने की बाट जोह रही है. धन की कमी का बहाना बनाकर इस क्षेत्र की जन आकांक्षाओं को सिरे से नकारने की कोशिश जारी है. अब जबकि रेल मंत्रालय ने हाथ खड़े कर दिए है, वैसे में यह परियोजना अपनी अंतिम सांसे गिनते नज़र आ रहा है.
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