केंद्र सरकार ने तीसरे प्रेस आयोग बनने की संभावनाओं को ख़ारिज कर दिया है. सूचना के अधिकार के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय(पीएमओ) में किए गए एक आवेदन के जबाब में सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के अवर सचिव सह केन्द्रीय जन सूचना पदाधिकारी शैलेश गौतम ने यह जानकारी आवेदक सूचना अधिकार कार्यकर्त्ता अभिषेक रंजन को दी है. अपने जबाब में सरकार की ओर से बताया गया है कि तीसरे प्रेस आयोग के गठन संबंधी कोई प्रस्ताव सरकार के अधीन विचाराधीन नही है. अभिषेक ने यह पीएमओ में यह आवेदन
RTI आवेदन के माध्यम से मांगे गए सूचना पर मिला जबाब ये रहा :
हाल के दिनों में तीसरे प्रेस आयोग बनाने की मांग देश के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने की थी. आयोग के गठन की मांग करने वाले लोगों की माने तो नवपूंजीवाद के इस दौर में मीडिया भी पूंजी आधारित, पूंजी आश्रित और पूंजीमुखी हो गया है। इससे कैसे बचा जाए, यह सिर्फ पत्रकारों के लिए ही नहीं, बल्कि व्यापक समाज और कल्याणकारी राय के दायरे में भी सोचने का भी विषय है।
लोगों का मानना है कि राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक स्तर पर हो रहे बदलाव में देश को जैसी मीडिया चाहिए उसका निर्णय तो तब ही समीचीन होगा, जब हमारे सामने पूरा एक शोधपरक अध्ययन हो। ऐसा अध्ययन अकादमिक नहीं बल्कि प्रचलित कानून के दायरे में होना चाहिए। यह काम तीसरा प्रेस आयोग ही कर सकता है। नामवर सिंह की माने तो पिछले दो प्रेस आयोग से अलग यह प्रेस आयोग सिर्फ सरकार द्वारा नियुक्त प्रतिनिधियों का आयोग न हो बल्कि जैसे लोकपाल के लिए जनता और सरकार के प्रतिनिधियों की समिति बनी है उसी तर्ज पर एक समिति बने.
प्रमुख पत्रकार जिन्होंने इस आयोग के पक्ष में अपनी राय रखी है:
तीसरे प्रेस आयोग का गठन किया जाए जो देश में पत्रकारिता के समक्ष मौजूदा खतरों और चुनौतियों का अध्ययन कर बेहतर विकल्प सुझा सके!
ललित सुरजन, संपादक, दीनबंधु
पिछले वर्ष इंदौर के भाषायी पत्रकारिता महोत्सव में गंभीर मंथन के बाद एक प्रस्ताव पारित हुआ। उस विमर्श में कई नामी और अनुभवी पत्रकार-संपादक थे, जो आयोग गठन के इस प्रस्ताव से सहमत थे। उन पत्रकारों में शामिलरामशरण जोशी ने तब कहा था कि “पिछले तीस सालों में हमारे राष्ट्र राज्य का चरित्र पूरी तरह बदल गया है। इसलिए तीसरे प्रेस आयोग की जरूरत है।“ रामबहादुर राय ने कहा था कि “मैंने एक बार कोशिश की थी कि तीसरे प्रेस आयोग की मांग को लेकर वरिष्ठ पत्रकारों का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिले। इसके लिए प्रधानमंत्री के तत्कालीन मीडिया सलाहकार हरीश खरे से समय दिलाने को कहा था, लेकिन वह समय नहीं मिल पाया। मुझे जो जानकारी है उसके अनुसार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसके लिए कोई समय नहीं निकाला और यह सब बड़े मीडिया घरानों के दबाव में हुआ।“ (यह लेख पढ़ना भी प्रासंगिक होगा-http://thepatrika.com/ NewsPortal/h?cID=bzJhH1ay6yk% 3D) परांजॉय गुहा ठाकुरता ने कहा कि “पारदर्शिता के लिए इसका गठन होना चाहिए।“ जनसत्ता के संपादक ओम थानवी का मत था कि संपादक संस्था के उद्धार के लिए यह जरूरी है। राज्यसभा सांसद व वरिष्ठ पत्रकार एच.के. दुआ का विचार था कि “प्रेस सही रास्ते पर चले इसके लिए प्रेस की मौजूदा स्थिति का अध्ययन जरूरी है। यह काम प्रेस आयोग कर सकता है।“ साफ है कि एच.के. दुआ जैसे अनुभवी लोग महसूस करते हैं कि प्रेस ने उल्टी राह पकड़ ली है। इन लोगों के अलावा वहां हरिवंश, राहुल देव, नामवर सिंह, पुण्य प्रसून वाजपेयी, अवधेश कुमार जैसे वरिष्ठ पत्रकार भी उपस्थित थे । जाहिर सी बात है कि प्रेस की आजादी पर किसी भी तरह से आंच न आए, इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रेस आयोग के गठन की मांग की गयी थी.
प्रेस आयोग के बड़े पैरोकारों में से एक रामशरण जोशी ने कुछ निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए आयोग बनाने की सिफारिशें की है
- भारतीय प्रेस परिषद को वैधानिक दृष्टि से शक्ति सम्पन्न बनाना। कार्रवाई और दण्ड के अधिकारों से लैस करना।
- प्रेस स्वामित्व स्थिति का गंभीर अध्ययन।
- एकाधिकार और केंद्रीकरण को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय कानून।
- समाचार-विचार और विज्ञापन में समानुपातिक संतुलन स्थापित करना/कानून बनाना।
- एक व्यक्ति या एक समूह या परिवार को एक ही माध्यम रखने का अधिकार।
- राष्ट्रीय और बड़े प्रेस प्रतिष्ठानों में प्रबंधक और संपादक के बीच प्रबुद्ध वर्ग या नागरिक समाज के प्रतिनिधियों का न्यास मंडल की स्थापना करवाना।
- संपादक संस्था को पुनर्जीवित करना। प्रबंधक, ब्रांड मैनेजर और विज्ञापन दाताओं के कार्यक्षेत्रों का वैधानिक रूप से निर्धारण और संपादन कार्य क्षेत्र की स्वतंत्रता की बहाली।
- प्रेस और उद्योग-व्यापार को सख्ती से ‘डीलिंक’ करना।
- अनुबंध-व्यवस्था की समीक्षा। वेज बोर्ड के प्रावधानों को लागू करवाना।
- स्थानीय लघु व मझौले समाचार पत्रों को सुरक्षा।
- विदेशी शक्तियों व पूंजी द्वारा भारतीय अभिमत को प्रभावित करने की कोशिशों की रोकथाम।
- भाषायी समाचार एजेंसियों की पुनस्र्थापना।
- कस्बों व ग्रामीण क्षेत्रों में पत्रकारिता शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था।
- प्रेस विकास आयोग की स्थापना। भाषाई प्रेस पर विशेष ध्यान।
- डी.ए.वी.पी., पी.आई.बी., आर.एन.आई. और प्रदेशों के जनसंपर्क कार्यालय आदि के कार्यों की विवेचनात्मक समीक्षा आवश्यक है।
- संस्करणों की संख्या व सीमा क्षेत्र निर्धारण।
- सोशल ऑडिटिंग की व्यवस्था। प्रेस की जवाबदारी निर्धारण।
- पत्रकारों की सुरक्षा, स्वतंत्रता और स्थायित्व की व्यवस्था।
- पूर्व के दोनों आयोगों के सुझावों की समीक्षा और अधूरे कार्यों को पूरा कराने का उत्तरदायित्व।
- प्रेस में विदेशी पूंजी नियोजन की अनुमति की जांच और भविष्य में इसके रोकथाम के उपाय।
- मनमोहन सिंह सरकार द्वारा मनोरंजन क्षेत्र में 74 से 100 प्रतिशत और प्रेस में 26 से 49 प्रति की विदेशी पूंजी नियोजन का मार्ग साफ करने की परिस्थितियों और विदेशी दबावों का अध्ययन।
- राष्ट्रीय प्रेस आयोग के साथ-साथ क्षेत्रीय आयोगों के गठन की आवश्यकता।
- प्रेसपत्ति, प्रबंधक (विज्ञापन, वितरण मैनेजर आदि) तथा मान्यता प्राप्त संपादक और अन्य वरिष्ठ पदों (संयुक्त संपादक) स्थानीय संपादक, ब्यूरो प्रमुख, चीफ रिपोर्टर आदि) पर आसीन पत्रकार प्रति तीसरे वर्ष अपनी चल-अचल संपत्ति की घोषणा करें।
प्रेस आयोग का इतिहास
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पहली संसद को संबोधित करते हुए 16 मई, 1952 को दोहराया था कि सरकार जल्दी ही एक आयोग प्रेस के लिए गठित करेगी। सरकार की रजामंदी और पत्रकारों की संस्था आई.एफ.डब्लू.जे. के प्रस्ताव ने रंग लाया। पहला प्रेस आयोग बना। जिससे प्रेस में लोकतंत्र के चरण पड़े।
पहला प्रेस आयोग
अध्यक्ष- न्यायमूर्ति जी.एस. राज्याध्यक्ष
सदस्य- सी.पी. रामास्वामी अय्यर, आचार्य नरेंद्र देव, डॉ. जाकिर हुसेन, वी. के. आर. वी. राव, पी.एच. पटवर्धन, टी.एन. सिंह, जयपाल सिंह, जे. नटराजन/ए.डी. मनि (सदस्य), ए.आर. भट्ट, एम. चेलापति राव।
पहले प्रेस आयोग का कार्यकाल- 3 अक्टूवर 1952 से 14 जुलाई 1954 तक रहा। इस आयोग की सिफारिश पर प्रेस परिषद, रजिस्ट्रार न्यूज पेपर, पत्रकारों के लिए वेतन आयोग बने।
समय और संदर्भ बदलते ही दूसरे प्रेस आयोग की जरूरत पड़ी। उसकी रिपोर्ट 29 साल पहले आई थी।
दूसरा प्रेस आयोग
अध्यक्ष- न्यायमूर्ति पी.के. गोस्वामी
सदस्य- आबू अब्राहम, प्रेम भाटिया, सुरेंद्र नाथ द्विवेदी, मोयनुदीन हेरिस, प्रोफेसर रवि जे मथाई, यशोधर एन. मेहता,वी.के. नरसिम्हन, फाली एस. नरिमन, स. ही. वात्सायन(अज्ञेय), अरूण शौरी, निखिल चक्रवर्ती। कार्यकाल 29 मई 1978 से14 जनवरी 1980 तक रहा।
No comments:
Post a Comment