लोकसभा चुनाव -2019 को ध्यान में रखते हुए आम आदमी पार्टी ने पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग के साथ अपना घोषणापत्र बीते दिनों जारी किया है. पिछले बार की वजाए इसबार आप बेहद कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है. दिल्ली में गठबंधन की तमाम कोशिशों के बावजूद और कई बड़ी रैलियों में आप मुखिया के भाग लेने के बाद भी किसी भी विपक्षी दल से इसका सीधा गठजोड़ नही हो सका है और आप अकेले मैदान में है. लेकिन पार्टी को पूरा भरोसा है कि अपने "काम न करने देने" के बहाने गिनाकर वह दिल्लीवासियों के वोट हासिल कर लेगी.
आप ने जो घोषणापत्र जारी किया है, उसको दो खंडो में विभाजित किया है- पहला, जो काम उसने "मोदी सरकार" के तमाम रुकावटों के बावजूद किया है, वही दूसरा, जो पार्टी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद करेगी.
आईये समझते है आप के घोषणापत्र को. बात केवल शिक्षा की.
आप ने घोषणापत्र में पहली उपलब्धि बताया है कि -
2015 में दिल्ली सरकार के स्कूलों में कुल 24,157
कक्षाएं थी. केंद्र सरकार की तमाम रुकावटों के बावजूद दिल्ली सरकार ने 8213 नए
क्लासरूम बनाए हैं. नवंबर 2019 तक 12748 और नए क्लासरूम बनकर तैयार हो जायेंगे.
असलियत- 7 मार्च 2017 को विधानसभा में दिए अपने भाषण में मनीष सिसोदिया
ने कहा कि 24 नए स्कूल शुरू हो रहे है, 8000 नए कमरों का काम लगभग पूरा हो गया. पढ़े बजट भाषण -
लेकिन आप की आधिकारिक वेबसाइट कुछ और हकीक़त बता रही है. 7 अक्टूबर 2017 को जारी प्रेस रिलीज के मुताबिक केवल 5695 ही कमरे बने. पढ़े प्रेस रिलीज .
2017 से ही सरकार यही माला जप रही है कि
हमने 8000 कमरे बनवा दिए. सच्चाई कुछ और ही बता रही है.
भला हो इकॉनोमिक सर्वे का, जिसने ये बताया कि बने तो 8000 लेकिन लगे पुरे 4.5 साल. जो सरकार 24-25% बजट आवंटित करवाने के बावजूद 4.5 सालों में 8000 कमरा बनवाती है, वह सरकार केवल 6 महीने में 12000 बनवाने का दावा करे तो हँसी आनी स्वाभाविक है.
लेकिन ये उपलब्धि बताकर आप सरकार ने पूर्ण राज्य के अपने मांग के तर्क से ठीक उलट बातें कर दी. आप ने अपनी घोषणापत्र में यह कहा कि सभी बच्चों को शिक्षा का समान अवसर प्रदान करने के लिए जिस प्रकार के इंफ्रास्ट्रक्चर की जरुरत है, उसे पूर्ण राज्य के दर्जे के बगैर पूरा कर पाना संभव नही है. दिल्ली सरकार के पास ज़मीन और शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति करने का अधिकार न होना इसमें सबसे बड़ी रुकावट है.
यहाँ आंकड़े साफ़ कहते है कि इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए दिल्ली सरकार चाहे तो काम कर सकती है. इसके लिए उसके पास पैसा भी है, बजट भी है और विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता की माने तो बहुत जगहों पर ज़मीने भी.
आप की सरकार ने पहले दिन से सभी स्कूलों के हितों की चिंता की वजाए दिल्ली के केवल 52 स्कूल मॉडल स्कूल के नाम पर चुने और उन्हें बेहतर स्कूल बनाने के लिए करोड़ों खर्च किये है. अच्छी बात है लेकिन आप की सरकार ने यहाँ भी काम नही किया. पढ़िए इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट
केजरीवाल और उनके समर्थक अमूमन जिन चमकती-धमकती तस्वीरों को वर्ल्ड क्लास स्कूल बनाने के दावे के साथ साझा करते है, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित वह स्कूल सर्वोदय बाल विद्यालय भी इन्हीं में से एक है. इसी एक स्कूल में आप सरकार ने 10 करोड़ खर्च किये है, जिसमें जिम भी बना है. कहा जाता है कि दिल्ली के केवल इसी स्कूल में सरकार ने जिम बनवाये, वही दिल्ली के 2 स्कूलों - मयूर विहार फेज-2 और ईस्ट विनोद नगर के स्कूलों में लगभग 5 करोड़ की लागत से स्विमिंग पूल बनवाये, लेकिन चित्र देशभर में ऐसे साझा किये गए, मानो सभी स्कूलों में स्विमिंग पूल है, जहाँ बच्चें तैराकी सीख रहे है, पानी से खेल रहे है, और जिम जाकर अपना शरीर हष्ट-पुष्ट बनाने में जुटे है.
जाहिर सी बात है कि जो सरकार जिम, स्विमिंग पूल और वर्ल्ड क्लास बनाने के लिए करोड़ों खर्च करने का अधिकार रखती है, उसका पूर्ण राज्य की दर्जा की बेतुकी मांग के आड़ में बाकी के सैंकड़ों स्कूलों को बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखना समझ से परे है. आज भी दिल्ली के अधिकांश स्कूलों में बच्चों के बैठने की जगह पर्याप्त नही है अथवा अधिक बच्चें एक ही कक्षा में बैठकर पढ़ते है.
आप ने अपनी दूसरी उपलब्धि बताते हुए कहा है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को प्रशिक्षण देने
के लिए फ़िनलैंड, सिंगापूर, ब्रिटेन जैसे देशों में भेजा गया ताकि दिल्ली के बच्चे
भी विश्वस्तरीय शिक्षा प्राप्त कर सकें.
दिल्ली में लगभग 36000 स्थाई शिक्षक नियुक्त है. Dialogue & Development Commission of Delhi द्वारा 4 साल की उपलब्धि पर फरवरी 2019 में जारी रिपोर्ट की माने तो बीते 4.5 साल में 695 शिक्षकों को विदेश यात्रा पर भेजा गया है.
दिल्ली के केवल 291 स्कूलों में विज्ञान पढ़ाई होती है. विज्ञान एवं गणित की पढ़ाई जहाँ होती भी है, वहां पर्याप्त शिक्षक नही है. गणित के लिए सृजित 5758 पदों में से 2408 और विज्ञान के 5570 पदों में से 2165 पदों पर आज भी कोई स्थाई शिक्षक नियुक्त नही है. सवाल उठता है कि जिस सरकार की प्राथमिकता में विज्ञान है ही नही, क्या वह विज्ञान के शिक्षकों की वजाए सोशल साइंस के शिक्षकों को 'इतिहास कैसे पढ़ाया जाए', इसका प्रशिक्षण लेने के लिए शिक्षकों को विदेश यात्राएँ करवा रही है! विदेश में तो STEM केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था को जाने-समझने लोग जाते है. दिल्ली क्या सीखने के लिए शिक्षकों को भेज रही है, समझ से परे है! यहाँ पर एक बात समझने वाली है, जिसपर सही से जाँच-पड़ताल होना जरुरी है कि शिक्षकों को चुनने के मापदंड क्या है? चयनित शिक्षकों में से व्यक्तिगत तौर पर कुछ को जानता हूँ, वे सरकार के चीयरलीडर्स की तरह दिनरात गुणगान में व्यस्त रहते है. कही ये राजनैतिक फायदा उठाने और सरकार समर्थक शिक्षकों की सेवा का माध्यम तो नही बन रहा?
दूसरी बात, दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को देखते हुए क्या सरकार को उन कमजोर बच्चों पर ध्यान देने के लिए प्रशिक्षण नही दिलवाने चाहिए थे, जिन्हें वह हर साल बड़ी संख्या स्कूलों से फेल करके बाहर निकाल देती है? केवल इसलिए कि वे कमजोर है, शिक्षक उपलब्ध नही है और स्थिति इतनी सुदृढ़ नही कि कोई बाहरी ट्यूशन/कोचिंग भी ले सकें! विश्व स्तरीय शिक्षा की नक़ल करने से पहले दिल्ली-स्तरीय शिक्षा व्यवस्था बनाने में जो सरकार विफल रही हो, वहां ऐसे प्रयास भले ही प्रथम दृष्टया अनुचित नही लगते हो, लेकिन भटकी हुई प्राथमिकता की जरुर गवाही देते है.
आप ने अपनी घोषणापत्र में कहा कि विशेष पहल के द्वारा बच्चों की सीखने की
बुनियादी क्षमताओं को सुदृढ़ करने का सफल प्रयास किया गया. इसके अतिरिक्त हैप्पीनेस
पाठ्यक्रम, एंटरपेन्योरशिप पाठ्यक्रम और संवैधानिक मूल्यों पर कैम्पेन के द्वारा
बच्चों का सर्वांगीन विकास किया जा रहा है.
दिल्ली सरकार के द्वारा बच्चों के सीखने की बुनियादी क्षमताओं को सुदृढ़ करने के लिए दो मशहूर कार्यक्रम चलाये गए. पहला मिशन चुनौती, दूसरा मिशन बुनियाद।
इन दोनों कार्यक्रमों में से एक मिशन चुनौती का सरकार ने लक्ष्य तय किया था कि 6-8 वीं कक्षा के बीच जो लर्निंग गैप है, उसे खत्म करेंगे तथा 9 वीं कक्षा में ड्राप आउट दर को शून्य करेंगे.
पढ़िए क्या था लक्ष्य मिशन चुनौती कार्यक्रम का (संदर्भ - आप द्वारा जारी किया गया शिक्षा पर रिपोर्ट -Transforming Delhi Education)
लेकिन ये कार्यक्रम अपने मकसद में सफल नही हो सका. लर्निंग गैप पाटने के तमाम दावे खोखले साबित हुए. परिणामों में मामूली सुधार देखने को मिले, स्थिति वैसी की वैसी ही बनी रही.
उसी रिपोर्ट का एक और अंश -
इस कार्यक्रम के तहत वर्ष 2016-17 में नौवीं के 59897 कमजोर बच्चों को विश्वास समूह में रखकर दिल्ली के स्कूलों से उठाकर सीधे पत्राचार कार्यक्रम में कक्षा-10 में धकेल दिया गया. इनमें से केवल 2% ही पास हो सकें।
जिन बच्चों को पत्राचार कार्यक्रम में भेजा गया, वहां पर शिक्षक भी पर्याप्त संख्या में नही थे. देखे प्रजा फाउंडेशन द्वारा जारी किये रिपोर्ट का महत्वपूर्ण हिस्सा-
पत्राचार कार्यक्रम की विफलता से परेशान विद्यार्थियों ने 2016-17 सत्र के बाद अगले सत्र में नामांकन भी लेना लगभग बंद कर दिया.
मिशन बुनियाद कार्यक्रम की भी हालत कुछ खास अच्छी नही रही. अप्रैल 2018 में शुरू हुए इस कार्यक्रम का रिपोर्ट बताता है कि यह कार्यक्रम कक्षा- 3 से लेकर 9वीं तक के बच्चों में टेक्स्टबुक पढ़ने और सामान्य गणितीय समझ बढ़ाने पर केन्द्रित था. इस कार्यक्रम की शुरुआत करने के उद्देश्य थे कि दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले उन 52% बच्चों की कौशल क्षमता बढ़ाना, जो गणित व हिंदी से संबंधित दक्षताओं में अपनी कक्षा के अनुरूप नही थे. यानी भारी-भरकम बजट खर्च करने वाले दिल्ली में आधे बच्चों को बुनियादी क्षमताएं आती ही नही थी. कार्यक्रम से दिल्ली सरकार ने काफी सुधार होने का दावा किया.
देखिये Dialogue & Development Commission of Delhi की रिपोर्ट का अंश
मिशन बुनियाद और मिशन चुनौती के सफल होने के तमाम दावे झूठे साबित हुए क्योंकि न तो सही से क्रियान्वयन की कोई योजना थी, न 9वीं में पास होने वाले बच्चों के पास परसेंटेज में कोई ख़ास बदलाव आया, न ही मिशन चुनौती के तहत किये प्रयासों का कोई परिणाम नेशनल अचिवेमेंट सर्वे (NAS)-2017 की रिपोर्ट में देखने को मिला. NAS की रिपोर्ट में दिल्ली का प्रदर्शन कक्षा- 3-8 की श्रेणी में राष्ट्रीय औसत से भी कम था.
कक्षा 7वीं और 8वीं के जिन बच्चों की दक्षता बढ़ने के दावे किये गए, उनके कक्षा 9 में जाने के बाद भी परीक्षा परिणामों पर कोई विशेष फर्क नही पड़ा और बड़ी संख्या में बच्चें फेल होते रहे. जहाँ वर्ष 2017-18 में 57.4% बच्चें 9 वीं कक्षा की परीक्षा में उतीर्ण हुए, वही 2018-19 की परीक्षा में पिछले सत्र के मुकाबले मामूली बढ़ोतरी हुई और 0.4% की वृद्धि के साथ 57.8 रहा। (संदर्भ देखे) यानी वर्तमान सत्र में भी लगभग 52% बच्चे आप की सरकार के तमाम दावों और वादें के बावजूद ड्रापआउट कर दिए गए.(और पढ़े- इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट)
सबसे ख़तरनाक जो ट्रेंड दिल्ली के स्कूलों में चल रहा है, वह है कक्षा-12 की वार्षिक परीक्षा में में प्रतिवर्ष बैठने वाले बच्चों की घटती संख्या। इन बच्चों में पिछले वर्ष फेल हुए कुछ बच्चें भी शामिल रहते है, जो यह साबित करता है कि बेहद कम बच्चें कक्षा-12 वीं तक पहुँच पा रहे है. वर्ष 2018 में आये परिणाम के बाद दिल्ली सरकार द्वारा 12वीं के परिणाम की समीक्षा के लिए जो पीपीटी तैयार की गई थी, उसका अंश देखे, जिसमें प्रतिवर्ष परीक्षा में बैठने वाले बच्चों की संख्या में आप सरकार आने के बाद लगातार संख्या घटती जा रही है-
कहना गलत नही होगा, सीखने के स्तर सुधार के तमाम वादे दिल्ली के जनता के आँखों में धुल झोंकने वाला है.
हैप्पीनेस क्लास/एंटरपेंयोरशिप पाठ्यक्रम
पहले बात करते है बहुचर्चित हैप्पीनेस क्लास की, जिसे पिछले वर्ष शुरू
किया गया है. इसमें शिक्षकों को प्रतिदिन किये जाने वाले गतिविधियों को करने संबंधी जो दिशा निर्देश गए है, उसका अंश गौर से देखिये (टीचर हैंडबुक, पृष्ठ संख्या-9, कक्षा-3-5/6-8)
अब जरा मध्य प्रदेश के स्कूलों में लागू होने वाले टाइम टेबल को गौर से देखिये (संदर्भ- राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा 13 जून 2018 को जारी पत्र क्रमांक- 2195) -
देखने से एक बात स्पष्ट हो जायेगी कि दिल्ली के स्कूलों में कुछ अनोखा नही हो रहा. बल्कि देश के लगभग सभी राज्यों में टाइम टेबल का एक हिस्सा उन गतिविधियों पर जरुर केन्द्रित रहता है, जो बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के साथ साथ जीवन शैली, व्यवहार और आम-जिन्दगी की बातों से उन्हें परिचय करवाए, उन्हें उनके मनमर्जी की चीजे करने की छुट दे, जिनसे बच्चों को ख़ुशी मिलती है.
अलग बस इस मायने में है कि दिल्ली सरकार ने भारी-भरकम बजट खर्च करके, सरकार की सहयोगी अनेक संस्थाओं को उपकृत करके कहानियों का संग्रह तैयार करवाई, कुछ अन्य गतिविधियाँ जोड़ी, कक्षा में उसे करने के तरीके बताये और उसे हर विद्यालय में मुख्यमंत्री/शिक्षामंत्री के फोटो और संक्षिप्त भाषण के साथ सभी स्कूलों तक पहुंचवा दिया। कहना बिल्कुल गलत नही होगा कि हैप्पीनेस पाठ्यक्रम दशकों से स्कूलों में होनेवाली गतिविधियों की रि-पैकेजिंग है, जिसमें कहानियों का संग्रह और दैनिक जीवन के व्यावहारिक गुणों के बारे में विशेष जोर है. फर्क बस इतना है कि इसे बुकलेट का शक्ल देकर दलाई लामा जी के हाथों से लांच करवाकर पूरी दुनिया में PR एक्टिविटी का एक मौका सरकार को मिला.
बच्चा कितना ख़ुश है अथवा नही, इसका अंदाजा बाद में लगेगा, लेकिन फिलहाल जो भी ख़ुशी बच्चों को मिल रही है 8वीं तक, उनपर 9वीं आते आते ग्रहण लगना तय है. क्योंकि सरकार पढ़ाने पर ध्यान देने की वजाए अच्छा प्रदर्शन न करने की क्षमता आंकते हुए उन्हें फेल करेगी ताकि 10 वीं और फिर बाद में 12वीं की परीक्षा परिणाम सुधारा जाए और दुनिया को अच्छी तस्वीरें दिखाई जाए. शायद लाखों बच्चों की रोने और रोते-विलखते बच्चों की तस्वीर दिल्ली के किसी और स्कूल के किसी हँसते हुए बच्चों के आगे दब जायेगी.
एंटरपेंयोरशिप
पाठ्यक्रम अभी ज़मीन पर उतरा भी नही है लेकिन आप ने इसे अपनी उपलब्धियों में शामिल कर लिया. यह कार्यक्रम जुलाई 2019 से लागू होगी. लेकिन इसका लौन्चिंग भव्य तरीके से त्यागराज स्टेडियम में किया गया, जहाँ चुनाव से पहले यह दिखाया गया कि हम कुछ बड़ा कर रहे है.
13 फरवरी 2019 को एक बड़े समारोह में एंटरपेंयोरशिप पाठ्यक्रम को लागू करने के लिए जो Entrepreneurship Mindset Curriculum दिल्ली सरकार द्वारा जारी किया गया, उसमें काम की बातें कम, नेताओं/अधिकारीयों
के भाषण अधिक है. 40 पृष्ठों के इस बुकलेट में 16 पृष्ठ इन्ही सबके लिए है. वही मुख्य विषयवस्तु अंग्रेजी में 11 पन्ने तथा इसका हिंदी अनुवाद 10 पन्ने में लिखा गया है. ऐसा
लगता है मानो आनन-फानन में लोगों के बीच लाना मकसद हो. उद्देश्य इसका भले सही हो, आप की पब्लिसिटी करने के लिए PR रणनीति का हिस्सा ज्यादा बच्चों के लिए कम लगता है.
आप ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि स्कूल मैनेजमेंट कमेटी(SMC) के तहत पहली बार
बच्चों के माता-पिता को स्कुल संचालन में शामिल किया गया. दिल्ली के सरकारी
स्कूलों में हर तीन महीने पर मेगा पैरेंट्स टीचर मीटिंग हो रही है.
SMC देश के हर सरकारी स्कूलों में है, जिसके कुछ सदस्य अनिवार्य रूप से अभिभावक ही होते है. (देखे MHRD के वेबसाइट का ये लिंक) दिल्ली में शीला दीक्षित की सरकार थी, उसी समय शिक्षा के अधिकार कानून के अनुपालन में 25 मार्च 2013 को एक पत्र जारी किया गया, जिसमें स्पष्ट लिखा है कि 16 सदस्यीय SMC में 12 सदस्य बच्चों के माता-पिता/अभिभावक होंगे.
इसी पत्र में यह कहा गया था कि कम से कम दो महीने में एकबार SMC की बैठक अवश्य होनी चाहिए. इसमें नया क्या है, समझ से परे है. हाँ, सरकार के साथ कुछ NGO जरुर SMC पर काम कर रहे है, वही सरकार ने थोड़े बजट भी बढ़ाए है.
इसी पत्र में यह कहा गया था कि कम से कम दो महीने में एकबार SMC की बैठक अवश्य होनी चाहिए. इसमें नया क्या है, समझ से परे है. हाँ, सरकार के साथ कुछ NGO जरुर SMC पर काम कर रहे है, वही सरकार ने थोड़े बजट भी बढ़ाए है.
आप ने अपने घोषणापत्र में एक और उपलब्धि बताते हुए कहा है कि पहली बार पिछले 3 सालों से लगातार
12वीं के रिजल्ट प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले बेहतर रहे है.
जैसा कि ऊपर भी चर्चा हो चुकी है, 12वीं का परिणाम इसलिए बेहतर नही आ रहे कि स्कूलों में बेहतर पढ़ाई हो रही है, बल्कि इसलिए आ रहे है क्योंकि बड़ी संख्या में बच्चों को या तो 9वीं में फेल कर दिया जा रहा है, जो बच्चें 10वीं में फेल हुए उनकों दुबारा एडमिशन नही दिया जा रहा, 11वीं में जो बच्चें आ गए और कही से पिछड़ रहे हो तो उन्हें 12वीं में नही जाने दिया जा रहा, वही जो 12 वीं में पिछले सत्र में फेल है उनमें से अधिकांश को दुबारा परीक्षा नही देने दिया जा रहा.
आप की सरकार बनने के बाद हर वर्ष 12वीं कक्षा की परीक्षा में बैठने वाले बच्चों की संख्या में भारी कमी देखि गई है. प्राइवेट को पछाड़ने की कहानी भी बिल्कुल बेबुनियाद है और इसकी द प्रिंट ने अपनी विशेष स्टोरी में बखिया भी उधेड़ रखी है.
अगर इसी वर्ष जारी परिणाम को आंकड़े से समझने की कोशिश करें तो लगभग 29% बच्चों को पिछले साल 11वीं में फेल कर दिया गया था. जो बच्चें इस साल 12वीं की परीक्षा दे रहे थे, वे जब सत्र 2015-16 में 9वीं कक्षा में थे तो उनके साथ कुल विद्यार्थी साथी 288094 थे, लेकिन इनमें से केवल 164065 विद्यार्थी ही सत्र 2016-17 में पहुंचे और कक्षा-10 वीं की परीक्षा में बैठ सकें. वही सत्र 2017-18 में कुल 171613 बच्चें 11वीं में थे, केवल 122428 बच्चें ही 12वीं की परीक्षा में बैठे. पिछले सत्र में फेल हुए और दुबारा बैठे बच्चों की संख्या को नजरअंदाज भी कर दे तो कुल अंतर 165666 बच्चों का है. इनकी किसे सुध है! इतनी बड़ी संख्या में बच्चों को फॉर्मल स्कूली शिक्षा से दूर करना और कोई हो-हल्ला भी न होना, समझ में आता है कि आप सरकार हर कॉलेज के गवर्निंग बॉडी में अपने बीट रिपोर्टरों/संपादकों को क्यों बिठा रही है.
आप की घोषणापत्र में एक और उपलब्धि बताई गयी है कि 12 वीं के बाद उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली के
बच्चों को 10 लाख रुपये तक गारंटी फ्री लोन की व्यवस्था की गई.
दिल्ली जैसे अमीर राज्य के लिए गारंटी फ्री लोन दिलाना मामूली काम है. मध्य प्रदेश जैसा राज्य तो अपने बच्चों को पूरी फीस माफ़ कर देता है. मुख्यमंत्री मेघावी विद्यार्थी योजना के आगे दिल्ली की ये पहल कुछ भी नही, जिसमें न तो लोन की दरों में कोई कमी हो रही, न ही सरकार मदद दे रही.
पूर्ण राज्य मिलने के बाद
आम आदमी पार्टी ने खुद को असहाय और केंद्र सरकार का पीड़ित बताते हुए पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग कर रही है और दर्जे मिल जाने से ही दिल्ली के हर समस्या के समाधान करने की बात जोरो-शोरो से कर रही है.
आप ने शिक्षा को लेकर भी अपनी कुछ ऐसी ही वादे शामिल किये है, जो वह पूर्ण राज्य के मिलने पर ही पूरी कर सकेगी. जानते-समझते है कि क्या है वे वादे-
1) शिक्षा के अधिकार का विस्तार- राज्य सरकार नया कानून लाएगी, जिसके तहत दिल्ली के हर बच्चे को नर्सरी से लेकर 12वीं तक अनिवार्य और विश्वस्तरीय शिक्षा मुफ्त में पाने का अधिकार मिलेगा, जिससे हर बच्चा खुशहाल, आत्मनिर्भर व सजग नागरिक बने सकें.
आप ने शिक्षा को लेकर भी अपनी कुछ ऐसी ही वादे शामिल किये है, जो वह पूर्ण राज्य के मिलने पर ही पूरी कर सकेगी. जानते-समझते है कि क्या है वे वादे-
आप के वादे
1) शिक्षा के अधिकार का विस्तार- राज्य सरकार नया कानून लाएगी, जिसके तहत दिल्ली के हर बच्चे को नर्सरी से लेकर 12वीं तक अनिवार्य और विश्वस्तरीय शिक्षा मुफ्त में पाने का अधिकार मिलेगा, जिससे हर बच्चा खुशहाल, आत्मनिर्भर व सजग नागरिक बने सकें.
- शिक्षा के अधिकार का विस्तार करना राज्य के वश के बाहर की बात है.
2) कॉलेज एजुकेशन का अधिकार- 12वीं में 60 फीसदी से अधिक नंबर पाने वाले दिल्ली के सभी छात्रों को कॉलेज में बतौर रेगुलर स्टूडेंट एडमिशन मिलेगा.
- ये ऐसा ही वादा है, जैसे किसी को चाँद पर घर गिफ्ट करने का वादा करना. दिल्ली सरकार के अधीन कॉलेजों में न तो इतनी सीटें है, न ही सरकार ने विधानसभा चुनाव के समय 20 नए कॉलेज खोलने के अपने किये वादे को पूरा कर पाई है. अब भला किस तरीके से 60% वाले बच्चों को रेगुलर बनायेंगे केजरीवाल, ये तो शायद उन्हें भी इसकी समझ नही होगी. रही बात बच्चों के एडमिशन की, नए कॉलेज खोलने के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा जरुरी ही नही है.
3) कॉलेज एडमिशन में दिल्ली के छात्रों के लिए आरक्षण- प्रत्येक कॉलेज में 85 फीसदी सीटें दिल्ली के छात्रों के लिए आरक्षित होंगी.
-आम आदमी पार्टी चुनावों के वक़्त हमेशा ये मुद्दा उठाती है कि हम आरक्षण दिलवाएंगे दिल्ली के कॉलेजों में, लेकिन ये न तो पूर्ण राज्य के दर्जे से होगा, न ही ये कभी संभव हो सकता है.
इस लेख के लेखक ने आप के इस फर्जी प्रोपेगेंडे को अप्रैल 2014 में भी एक्सपोज कर चुका है कि आप का यह चुनावी वादा बिल्कुल फर्जी है और इसे अमल में लाना बिल्कुल असम्भव है.
पढ़िए लेखक द्वारा मांगे गए RTI जानकारी पर जबाब, जो डीयू ने दिल्ली सरकार को दिए थे-
RTI से संबंधित पूरी जानकारी के लिए पढ़े 5 वर्ष पुराना ब्लॉग
4) शैक्षणिक सुविधाओं और शिक्षकों की संख्या का विस्तार- शिक्षा के नए कानून के मानकों के तहत अतिरिक्त स्कुल और कॉलेज बनाये जायेंगे एवं पर्याप्त संख्या में नियमित शिक्षकों की नियुक्ति की जायेगी.
- बगैर पूर्ण राज्य के दर्जे के भी ये काम आसानी से किये जा सकते है. आप ने खुद ये बात कई बार स्वीकार किये है कि वह नए स्कूल/कॉलेजों को खोलने के लिए कार्य कर रही है. रही बात शिक्षक नियुक्ति की तो ये काम इस सरकार की प्राथमिकता में है ही नही.
5) गेस्ट शिक्षकों का स्थायीकरण – दिल्ली सरकार के स्कूलों में वर्तमान में कार्यरत सभी गेस्ट शिक्षकों को स्थाई किया जाएगा.
5) गेस्ट शिक्षकों का स्थायीकरण – दिल्ली सरकार के स्कूलों में वर्तमान में कार्यरत सभी गेस्ट शिक्षकों को स्थाई किया जाएगा.
- गेस्ट टीचर की नियुक्ति और गुणवत्ता को लेकर कई सवाल है. बीते दिने DSSB द्वारा लिए परीक्षा में 77% गेस्ट टीचर पास मार्क्स भी नही ला पाए.
पढ़े दिल्ली हाई कोर्ट में दिल्ली सरकार के हलफनामे का अंश, जो अधिवक्ता अशोक अग्रवाल जी की याचिका पर दिल्ली सरकार ने जमा किये थे -
6) मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षा का विस्तार- नए मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों के द्वारा लगभग 10 हजार सीटों की बढ़ोतरी की जायेगी.
-दिल्ली विधानसभा में वित्तीय वर्ष 2017-18 के अपने बजट भाषण में दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया लगभग इतने ही सीटों की बढ़ोतरी की घोषणा कर चुके है. वह भी तब, जब पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग जन्म भी नही ले सकी थी, न ही आप ने इसे चुनावी मुद्दा बनाने का कोई गंभीर प्रयास किया. समझ से परे है कि इतने कांफिडेंस से पुरे एक्शन प्लान के साथ दावा करने वाले शिक्षा मंत्री पर आप को भरोसा नही है, या फिर कुछ न कर पाने के बहाने.
पढ़िए विधानसभा में बजट भाषण का वह अंश
7)200 पॉइंट रोस्टर लागू करेंगे- उच्च शिक्षण संस्थानों में 200 पॉइंट रोस्टर लागू किया जाएगा.
- केंद्र सरकार ने अध्याधेश के जरिये 200 पॉइंट्स रोस्टर लागू कर दिया है. केजरीवाल केंद्र के फैसले पर जबरदस्ती रोटी तोड़ने की फ़िराक में लगे है.
आप की उपलब्धियों और उसके वादों में कोई दम नही है. ऐसा लगता है कि जो वाक्य चुने गए घोषणापत्र के लिए, वह बिना किसी सोच-समझ के शामिल कर लिए गए या फिर आप लोगों को बेवकूफ समझती है. कहना गलत नही होगा कि ये घोषणापत्र कम, झूठ का पुलिंदा अधिक है.
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